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ॐ ह्रीं माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षमङ्गलप्राप्ताय श्री वृषभनाथाय अर्घ निवंपामीति स्वाहा।
जयमाला
घत्ताछन्द जय जय जिन-चदा आदि-जिनंदा,
हनि भव-फंदा-कंदा जू । वासव-शत-वंदा धरि आनंदा, ज्ञान अमंदा नदा जू ।।
छन्द मोतियदाम त्रिलोक-हितंकर पूरन पर्म,
प्रजापति विष्णु चिदातम धर्म । जतीसुर ब्रह्म विदांवर बुद्ध,
___ वृषक अशंक क्रियांबुधि शुद्ध ।। जब गर्भागम,मंगल जान,
तब हरि हर्ष हिये अति आन । पिता जननीपद सेव करेय,
अनेक प्रकार उमंग भरेय ।। जये जब ही तब ही हरि आय,
गिरीद्रविष किय न्होंन सुजाय ।