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धिग-धिग् है इस खङ्ग भुजा को, फुलका कीना छ। शिर को छेदूं दुख को भेदूं, यों करता मन खंद है। 1१६६ । वीरसिंह इक वीर पुरुष ने, मयणरहा नहीं पाई। महल में पहुंची होगी रानी, सोच चला दिल मांही है। १२०० । रास्ते में मणिरथ राजा के, उसने सुन लिये चैन। . धीरज देता यों वह कहता, तजदो नृप कुचैन है।स ।२०१। आत्मघात से सुनो राजवी! नहीं जाता तुज पाए । चन्द्रयश से माफी मांगो, मन को रखो साफ रेस १२०२ ॥ मैं पापी अव चन्द्रयश के, कैसे सम्मुख जाऊं। प्राणनाथ से दूजा मारग, दिखे न सत्य सुनाऊं रेस १२०३ ॥ चन्द्रयश उदार कुंवर है, कर देगा वह माफ । इस पद के नहीं योग्य रहा मैं, छोड़ देओ मुझ साफ रे । २०४। यों कह नृप जव चला वेग से, तग छाया घनघोर । मानो पाप की दूजी छाया, राय चला चित्त चोर है।स।२० । महानाग ने डंक दिया वहां, पड़ा धरणी पर आय। दुर्बुद्धि भी आने से नृप, नीच-भावना मांय रेस २०६ । प्यारी प्यारी मयणरेहा तुम हो, महान चतुर सुजान । सांमतों से मुझे बचाया, अव रखो मुझ मान रेस १२०७ । चन्द्रयश जो विघ्न करे तो, उसके लूंगा प्रान । तेरे खातिर हे सुन प्यारी, कार्य न कोई महान रे । २०८ । वैरी सांप ने विघ्न किया है, मेरे तेरे बीच । गिध्या मोह को धरता राजा, पहुँचा नरक के बीच इस 1०६ । धूम्रप्रभा में पहुंचा राजा, करणी का फल पाया। गुनि कहते सुन राय विद्याधर, पाप महा सुरवाया है। १२:०१ सामन्त ने जब बात सुनाई, चन्द्रयश पदराया । आश्वासन से धीरज धारी, नृप शव को दर. या २१: रोष शोर से की अन्येष्टि, माता को नहीं पर
गति मिलाप से राजा रोचा, लागत भी प्रकार :: . पोय पुराय ने दे दिया जय. नृप पर .: महातान हुवे पर, मानता
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