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नारी-हदय में पुत्र-व्यथा की, चिन्ता अपरंपार | नर नहीं जाने सुनो नाथ ! मम, लाल खजाने डाल रे ।स । १८४ । जीव-रहित मैं लाल न लूंगी, लीनी प्रीतम धार । माफ करो अपराध हमारा, मैं हूं दुख दातार रे ।स। १८५ | यों मत बोलो प्राण की प्यारी, यह जीवित है लाल | सुन के दौड़ी, प्रेम को जोड़ी, दुख को दीना डाल रे ।स।१८६ । अहो अनुपम पुत्र-रल यह, कहां से लाये नाथ । जलदी रख दो गोद में मेरी, यह दुखिया का साथ रे ।स |१८७। हर्ष भराई हिये लगाई, चुम्बन से सुख पाय ।
अन्धकार भय मेरे महल में, ज्योति दीवि लगाय रे ।स।१८८ । पुत्र-रल यह कहां ले लाये, मुझे कहो समझाय । अश्व के द्वारा वन में पहुंचा, वृक्ष-दृष्टि ठहराय रे ।स।१८६ | कल्पवृक्ष सग उस वृक्ष से, मुझको मिल गया बाल | क्या महिमा मैं गाऊं इसकी, गुण-संपन्न यह लाल रे ।स १६० । मेरी खातिर किस सुभगे ने, वन में रखा निदान | पुत्रवती मैं आज बनी हूँ, यत्न करूंगी महान रे ।स।१६१ । गुप्त गर्भ था पटरानी के, जनमा सुन्दर बाल । फैली बात यह सारे राज्य में, सव जन मंगल माल रे ।स।१६२ | वैरी राय तक जव पहुँचेगी, पुत्र रत्ल की बात | नतमस्तक तब वे सब होंगे, तज के मन की घात रे ।स ।१६३ | गुण-संपदा तव नाम पुत्र का, 'नामि' यह देगा राय | सुन के सतीजी साता पाई, मुनि-गुण मुख से गाय रे ।स |१६४ । घनन घननन घंटा वजते, आया देव विमान | तेजपुंज इक देव उसी से, निकला महा गुणवान रे |स १६५ । प्रथम वंदना सती को करके, मुनि के वन्दै पाय | निमय पाया विद्याधर तब, मुनिजी भेद वताय रे ।स |१६६ । भार मार के मणिरय राजा, महल को चला सपाप । मग गे मन में धूजा, यों वोला तव साफ रे ।स 1१६७। : फुगत ने धेरा मुझको, भाई के लीने प्राण | र पानी को दंड का दाता, मैं अपराधी महान रेस १६८