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स्वर्ग चारवें दोनों पहुंचे, धर्म सदा धातकी खंड के भरतक्षेत्र में, दोनों उपजें हरिपेण वासुदेव की रानी, समुद्रदत्ता युग्म पुत्र वे दोनों जन्मे, नाम सुनो सुखधाम रे ||१७१ | 'समुद्र दत्त' हुये युवराया, सागरदत्त तस भ्रात |
नाम ।
स्थविर समीपे संयम लेके, किया मुक्ति का साथ रे । स । १७२ । विद्युत से दोनों मुनिवर जी, तीजे दिन कर काल । महाशुक्र में हुये देवता, धर्म-तत्त्व के पाल रे | स |१७३ |
गिरि गिरनारे नेम-प्रभु को,
उपना
समवसरण में दोनों देव ने प्रश्न किया घर
"
केवल-ज्ञान |
दोनों देव तुम चरम-शरीरी, प्रभु कीना संयम लेके मोक्ष पावोगे, उतरोगे
सुखदाय | आय रे | स ११७० |
बहुत लाल यह भोला लाके, पुनरपिन इस दुभगे का
ध्यान रे । स । १७४ |
निरधार ।
पार
रे | स | १७५ ।
मिथिलापुर का विजयसेन नृप, क्षत्रिय कुल अवतंस | पद्रमरथ जी पुत्र उसी का, शूर होगा निःशस रे । स ।१७६ | सुदर्शन-पुर का युवराजा, युगवाहु गयणरेहा का पुत्र दूसरा, नमो नाम लघु-पुत्र की कहूं कहानी, सुनो ध्यान पुण्यवान जन जहां विराजे, आनन्द रंग चीर-फाड़ के वृक्ष डाल पै, झोली में पुत्र पुत्र-हीन मिथिलेश्वर राजा, अश्व पै आया सुन्दर सुत को पाय राय जी, आनन्द अंग न गाय | पटरानी के महल पधारे, यों बोले हरपाय रे । स ।१८० |
तस
नाम ।
गुणधाम रे । स । १७७ ।
मन
लाय |
वधाय रे |स |१७८ ।
सुलाव |
धाय रे |स | १७६ |
रे सुन प्रिया हमारी, अति सुखकारी, लेवो लालजी || नाथे ! लाल से काम न मेरे, मैं हूं अभागिन नार ।
पुत्र
लाल विन होरे लाल सब मेरे हैं बेकार रेacti
,
धीरज घर के मेरी प्यारी, गिरसो नजर लगाय । अजब-गजब का यह तो लाल है, चिन्ता देवे सिवाय नाव
सुमो पे रायः नहीं विय