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दर्शन का दो दान रायजी, तुम मेरे आधार | मुनि-दर्शन से वंचित रहकर, जीवन से नहीं प्यार रे ।स ।१५५ । बिन प्रसन्न प्रमदा नहीं होती, वांछित फल दातार | मुनि-दर्शन का योग दिलाकर, कर लूंगा घर-नार रे ।स ।१५६ । मुनि-दर्शन को चला राय तब, सती मन हर्ष अपार । विरुद्ध-भाव को धरे रायजी, सुधरे मेरा कार रे।।स।।१५७।। कृषी सूखते जलधारा से, कृषक मन हरषाय । मीन के मरते सरवर भरते, महिमा कही न जाय रे ।स।१५८ | रोम-रोम शीतलता छाई, मुनि-दर्शन जब पाय । करी वंदना मेटी भरमना, बैठी शीश नंवाय रे ।स।१५६ | ज्ञान-भाव से मुनि ने जाना, सती का सरल विचार । अमृत धारा धर्म देशना, वरसाई सुखकार रे । ।स ।।१६० ।। रवि की रश्मि से तम नहीं रहता, मुनि उपदेशे पाप । बोध हुआ मणिप्रभ राजा को, हिरदा हो गया साफ रे ।स |१६१ । सरल भाव से सती से बोला, माफ करो अपराध । मुनि उपदेशे बोध हुआ है, मिटा मेरा विखवाद रे ।स (१६२ । प्राणदान और मुनिदर्शन के, तुम हो दाता वीर । क्या तारीफ करूं मैं मुख से, सुखदाता बड़वीर रे ।स। १६३ । मुनि उपदेशे भाई प्रेम से, मुझ आया वैराग । सव सावज को त्याग कर कब, लूं संयम महाभाग रे ।स।१६४ । पुत्र याद जब आया सती को, मुनि से पूछे बात । महाभाग तुम मुझे बताओ, पुत्र तणा वृत्तान्त रे ।स।१६५ । लाभ जाण मुनिवर यों बोले, आगमधर अणगार । चिन्ता तजदो बाई! पुत्र की, धर्म बड़ा रखवार रे ।स |१६६ । सुनो पूर्वभव तुम पुत्र के, चरम शरीरी जीव । दीक्षित होकर केवल पाकर, पावेंगे सुख शिव रे ।स।१६७। जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में, 'पुक्खलवई' सुखकार | 'मणितोरणपुर' चक्री राजा, 'अमितयशा' गुणधार रे ।स।१६८ । 'पुष्पशिखर' अरु 'रलशिखर' यों, दो पुत्रों की जोड़। चारण-मुनि से शिक्षा पा के, ली दीक्षा धर कोड़ रे ।स।१६६ |