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मात-पिता का ऋण है भारी, मैंने नहीं चुकाया। राज काज यह पीड़ा देता, चन्द्रयश घबराया रे ।स |२१४ । शोध करन को भेजे नृप ने, सुभट महा वड़वीर । पता नहीं पाया माता का, आके बंधाई धीर रे ।स।२१५ । रैयत की करुणा नृप लाया, सेवा भाव मन धार | शोक रहित हो राज्य चलाता, चन्द्रयश सुखकार रे ।स ।२१६ । पति को सहाय दिया जो सती ने, ब्रह्मलोक में देव । करणी-फल पाया मन भाया, आज बजाता सेव रे ।स ।२१७ । जिस प्रताप से देव हुआ बहै, प्रथम किया प्रणाम | मन की शंका मेटो राजा, यह है धर्म का काम रे ।स।२१८ । मुनि दर्शन का फल अति मोटा, प्रत्यक्ष देखा आज | इस भव के महा दुख से छूटा, सुधरे मेरे काज रे ।स।२१६ । कर वन्दन मुनिजी को राजा, सती के लागा पाय । भूरि प्रशंसा करके बोला, आशीर्वाद दो माय रे ।स।२२० । मतवाले हाथी को सुधारे, महावतजी बलवान | मुझको तुमने शुद्ध किया है, यह उपकार महान रे ।स।२२१ । कहे सती सुन भाई हमारे, किया महा उपकार | आशीर्वाद भी तुम मम देवो, मैं हूं याचन हार रे।स।२२२ । प्रेमालाप दोनों में होते, देव कहे समझाय । सब मिलकर गुण गावो मुनि के, दिया ज्ञान का सहाय रे ।स ।२२३ । प्रेम भाव से मणिप्रभ को, पहुंचाया निज धाम | देव सती से नम के बोला, कहो योग्य मम काम रे ।स ।२२४ । भवसागर से पार उतारे, महासती सहवास । उनके शरणे मुझको सौंपो, यह विनती है खास रे ।स ।२२५।। पुत्र-स्नेह से मन व्याकुल है, दिखलाओ दीदर | मिथिलापुरी में मुझको रखदो, मानूंगी उपकार रे ।स।२२६। मुनि वंदन कर बैठ विमाने, मिथिलापुरी को जाय । पूर्व कथा को कहे प्रेम से, मन में हर्ष न मायरे ।स ।२२७। पुत्र साध्वी स्थान दो में से, वहां जाना सुख धाम | प्रथम साध्वी दर्शन पाऊं, जिससे सुधरे काम रे ।स।२२८ |