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वात खोल सव वोली दूती, सती में आया जोश । चंड स्वरूप को धारा खङ्ग ले, छाया नेत्र में रोष रे |स ।५५ । रे निर्लज्ज! फिर मत आना, जो प्यारे हो प्राण । दूती डर के गई राय पै, छोडो उसका ध्यान रे ।स।५६ । मैं खुद जाकर करूं प्रार्थना तव मानेगी वात । नीच-बुद्धि से नीचता, कर्मों का उत्पात रे ।सती ।५७ । कामी राजा सोचे मन में, वह है चतुर सुजान । दूती को क्यों भेद वतावे, क्षत्रिय का अभिमान रे ।स ।५८ । अर्द्धनिशा चल आया सती घर, किया वचन उच्चार । हे सुभगे! मुझ आदर देओ, होओ प्राणाधार रे ।स।५६ । सुनकर सोचे मयणरेहाजी, धिक्-धिक् मेरा रूप । ज्येष्ठ श्रेष्ठ को भान भुलाया, पड़ा मोह के कूप रे ।स।६०। कमल पुष्प सम कहते नयन को, मुख को चन्द्र समान । सुन्दर रूप की नीधि मान के, नृप ने खोया भान रे ।स।६१ । इतना भी नहीं रहा भाव मैं, हूं वंधव की नार । धिक्-धिक् हैं इस भूप को अरे, आया क्रोध अपार रे ।स १६२ । दे धिकार मैं करूं फजीती, फिरे सोचा दिल मांय । अपने कुल का गौरव रखना, यो धीरज मन ठाय रे ।स । ६३ । सोच समझकर वचन उच्चारे नर-नारी गुणवान । विना विचारे वचन उच्चारे, मानव नहीं हैवान रे ।स ।६४ । शान्त शब्द से बोली सतीजी, प्रजा पिता सम राय । ज्येष्ठ श्रेष्ठ सुसरा हो मेरे, सोचो मन के मांय रे ।स।६५ | रक्षक बन भक्षक नहीं होना, विनति लेओ धार । घरे सिधावो मन समझायो, कदे न लोपू कार रेस ६६ । गुण-सागर सुन्दरी बिन मेरा, राजतंत्र देकार । बुद्धिदाता बनो सहायिका, होवे हल्का भार रेस ।६७ । युवराजा की मैं हूं रानी, जिस पे रक्खा भार । लालच छोड़ो मन को मोड़ो, धर्म से देड़ा पार है।।६८) पति प्रेम से शुद्ध भाव को, देव न सके चलाय । किसी लोभ से मैं नहीं ललचूं, चित्त को लो समझाय २६६।