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राजा कपट कर बोला सभा में, सेना सजग हो जावे । आन न माने उसे मनावे, देश—साधने जावे रे ।स । ४०। युगबाहु यों बोला सभा में, आज्ञा दो महाराज | मेरे रहते आप सिधारो, मुझको आती लाज रे ।स।४१ । मुझ बांधव तूं प्राणपियारो, यह संकट को काल | वैरी—मुख में तुझे भेजना, यह कैसा मम साल रे ।स |४२ । क्या कायर तुम मुझे बनाते, मैं क्षत्रिय का अंश । वीर-कार्य में विघ्न करो मत, जैसे रहे नृप -वंश रे ।स । ४३ | पाप पेट में अमृत मुखमें, मणिरथ बोला बैन । सब विधि से तुम वीर वीर हो, विरह न चाहते नैन रे ।स।४४ । 'जावो' मुख से शब्द न निकले, रखे न सुधरे काज | धर्म शीलता रहे तुम्हारी, यों बोले महाराज रे ।स।४५ । प्रणमन करके चले बाहुजी, आये पत्नी पास । विधि से प्रेम प्रकाशत बोली, कहो सेवा जो खास रे ।स।४६। जाने की सब बात की तब, दोनों जोड़े हाथ । प्रभो! विघ्न करना नहीं चाहती, मैं हूं क्षत्रिय जात रे ।स।४७। इष्ट धर्म का ध्यान रहे सदा, यह मेरी अरदास | दर्श आपका फिर हो जल्दी, यह है मन की आश रे ।स।४८ | सेना साथे चले बाहुजी, नीति धर्म के साथ | अरिजन आकर पड़े चरण में, नहीं न्याय की घात रे ।स | ४६ | मन में मोद धरा राजाने, इच्छा पूरूं खास । दूती को बुलवाय रायने, भेद दिया परकाश रे ।सती ।५० । वायें हाथ का खेल हमारा, पूरण करणी आश । वस्त्राभूषण और मिठाई, ले आई सती पास रे ।सती।५१ । पति गये परदेश हमारे, ज्येष्ठ श्रेष्ठ का मान । समझ भाव से लिया सती ने, और न मन में ध्यान रे ।स ।५२ । दूती खुश हो गई राय पै, सुधरा तुमरा काम | पुनः सजावट सज के आई, मयणरेहा के धाम रे |स ।५३ । पति नहीं है साथ हमारे, मुझे न रुचते भोग। निरर्थक यह कार्य तुम्हारा, नहीं हमारे जोग रे ।स ५४ ।