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सीता शीले कर्ग नाली, मो .। दाने लक्ष्मी गति सरस्वती, गोरी माना । विशेषज्ञ गुण बहा राती में,
भार कृतज्ञता गुण को पहनाने, तज के
गामा | शील नेग अस पति रंजनका, सतीजी मा। पुत्ररल को जन्ग दिया है, चन्द्रयण गणात १२॥ चन्द्रकला सग बढ़े कुंवरजी, सपने के अनुसार। कल्पवृक्ष सपने में देखा, गर्भ धरा श्रीकार रे ।१३ रफटिक-पात्र में दिप्त --ज्योति राम, राती को पीपे भाय। शुभकारी दोहद को धरती, पति पूरे गन लाय रे । एक दिवस श्री युग बाहुजी, बायब महले जाय।। अति आदर से आसन बैठे, बोले गांगर धराय रे ।। ११:। शुभ समागम भाई तुम्हारा, गन मेरा हराय। युवराजा पद देने की राय, बातें दीनी सुनाय है।स। १६ नीचे सिर युगवाहु बोले, यह क्या करते पात । आप कृपा से मैं जीवित हूँ, और ग मुशे गुहारा रे ।। १७ । दोनों भाई का साथ मिले तब, सुख पावे संसार। अपूर्व पात्रे शक्ति शोभे, यह मेरा गिरधार है।।१८। मेरी लघुता होती इसमें, तुम हो पिता समान। पदवी ले सेवा करूं मैं, इतना नहीं नादान है।।१६। हृदय-भेदी हैं वाक्य तुम्हारे, अहो -~-अहो गुणवान ।। भाई की आज्ञा को गानो, रखो हमारा मान रे।।२०। अर्द्ध स्वीकृति देके वाहुजी, आवे तिरिया हल । चित्त में चिन्ता गन के गित्ता, विरार गये सब सेल रे ।। ।२१। चिन्तातुर जब पति को देखा, राती ने किया विचार । हँस के पूछा तुरत विनय से, जान पड़ा सब कार रे ।स।२२ । अमृत सी वाणी से बोली, पद परवाह नहीं आप। ज्येष्ठ श्रेष्ठ का आदर करते, रहो रादा निणाप रे ।स ।२३ । नहीं लेने से दुखित भ्रात हो, नहीं लेने में दोप। सेवा भाव की वृद्धि सगझ के, गन में रखो तोप रे ।स।२४ ।
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