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सुन्दरी और धर्म-दृढ़ता में सती चेलना भारतीय इतिहास में अमर हो गई हैं। उनका चरित्र, ज्ञान और त्याग महिलाओं के लिए सदैव अनुकरणीय रहेगा।
इतना सब होते हुए भी आजकल बहुत से लोग स्त्रीशिक्षा का तीव्र विरोध करते हैं। धर्मान्धता ही इसका मुख्य कारण है वे यह नहीं सोचते कि योग्य माताओं के विना समाज की उन्नति सर्वथा असम्भव है।
जैन शास्त्र स्त्रीशिक्षा का हमेशा समर्थन करते हैं। स्त्री को धर्म और अपने सभी कर्तव्यों का ज्ञान कराना नितांत आवश्यक है। अगर स्त्री मूर्ख तथा अज्ञानी रही तो यह अपने कर्तव्य को भूल सकती है। जैन शास्त्रों के अनुसार गृहस्थ रूपी रथ के स्त्री और पुरुष ये दो चक्र हैं। इन दोनों का सम्बन्ध कराकर मिलाने वाला वैवाहिक वन्धन है। बहुत लोग एक ही पहिए को अत्यन्त मजबूत और शक्तिशाली रखना चाहते हैं। किन्तु जब तक दोनों चक्र समान गुण वाले और समान शक्ति वाले न होंगे, रथ सुचारू रूप से नहीं चल सकता। उसकी गति में स्थिरता कभी नहीं आ सकती। पुरुष और स्त्री का स्थान बराबर होने के साथ ही साथ उनके अधिकार, शक्ति स्वतंत्रता में भी सदैव एकता लाने का प्रयल करना चाहिए। यद्यपि दोनों में कुछ भिन्नता भी अवश्य है पर वे एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का सुखमय जीवन उनके पूर्ण सहयोग और प्रेम पर निर्भर है।
अन्य पुस्तकीय शिक्षा के साथ-साथ बालिकाओं के शारीरिक विकास की ओर भी अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अभाव में उनका शरीर बहुत निर्बल होता है। एक तो वे स्वभावतः ही कोमल होती है और दूसरे उनका गिरा हुआ स्वास्थ्य, कायरपन और भीरुता बढ़ाने में सहायक होता है। वे पुरुष के और ज्यादा आश्रित रहती है। उनको किसी कार्य में स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती, उन्हें सदैव दासता के बन्धन में बन्ध कर पुरुष की गुलामी करते हुए अपना जीवन निर्वाह करना पड़ता है। कहा गया है : स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है।
निर्वल और सदैव बीमार रहने वाली महिलाओं का जीवन सुखी नहीं रह सकता। परिवार के सभी सदस्य, चाहे कितने ही सहनशील क्यों न हो, हमेशा की बीमारी से तंग आ ही जाते हैं। पति के मन में भी एक प्रकार का असन्तोष-सा रहता है। गृहकार्य पूर्ण रूप से न होने पर अव्यवस्था होती है। अगर प्रारम्भ से ही शरीर की ओर पर्याप्त ध्यान दिया जाय तो बीमारियां नहीं हो सकतीं।
___लड़कों के विद्यालयों में तो उचित खेल-खूद का भी प्रबन्ध रहता है पर बालिकाओं के लिए इसका पूर्ण अभाव-सा है। उनका स्वास्थ्य बुरी अवस्था में है। प्राचीन काल में स्त्रियां सभी गृहकार्य अपने हाथों से किया करती थी, जिसमें कूटना, पीसना, खाना पकाना आदि आ जाते थे, जिससे उनका स्वास्थ्य ठीक रहता था। पर आजकल तो सभी कार्य नौकरों से करवाये जाने लगे हैं। हर एक कार्य के लगाए गए नौकरों से स्त्रियों का स्वास्थ्य बहुत गिरता जा रहा है। वे कुछ भी काम अपने हाथ से नहीं करना चाहती। उनकी इस निर्वलता का प्रभाव सन्तानों पर पड़ता है। वह भी बहुत अल्पायु और अशक्त होती है। कुछ-कुछ योरोपीय संस्कृति के प्रभाव से स्त्रियों की गृहकार्य करने में लज्जा-सी होने लगी है। लेकिन योरोपीय महिला के रहन-सहन और भारतीय महिलाओं के रहन-सहन में बहुत अन्तर है। वे बहुत स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने-घामने बाहर निकलती हैं। उचित व्यायाम और खेल-कूद आदि की भा उनके लिए सुव्यवस्था है। इसी कारण उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है, पर भारतीय महिलाएं तो उनका अन्धानुसरण करके अपना और अपनी सन्तान का जीवन विगाड़ रही हैं।
स्त्रियों के लिए सर्वोत्तम और उपयुक्त व्यायाम गृहकार्य ही हैं। उन्हीं की उचित रूप से शिक्षा दी जानी जिसस वे अपना स्वास्थ्य ठीक कर सकें। चक्की चलाना बहुत अच्छा व्यायाम है। छाती, हदय आदि इसस
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