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'मां ।'
मगर खाने को देने से शस्त्र तीखा होता है, ऐसा कहने वालों की श्रद्धा के अनुसार तो वहिन लड़की की अंगों में काजल लगाकर शस्त्र तीखा कर रही है ? इसलिए न लड़की को खिलाना चाहिए और न आंखों में अंजन ही अंजना चाहिए। फिर तो उसे ले जाकर कहीं समाधि करा देना ही ठीक होगा। कैसा अनोखा विचार है । यह सव अशिक्षा का ही फल है।
लड़की की गाता को पहिले ही ब्रह्मचारिणी रहना उचित था, तव मोह का प्रश्न ही उपस्थित न होता, लेकिन जब मोहवश सन्तान उत्पन्न की है तो उचित लालन पालन तथा शिक्षित करके उस मोह का कर्ज भी दुकाना है। इसी कारण जैन शास्त्रों में माता-पिता और सहायता करने वाले को उपकारी बताया है। भगवान् ने है कि सन्तान का लालन-पालन करना अनुकम्पा है ।
तात्पर्य यह है कि जो माता अपनी कन्या की आंखें फोड़ दे उसे आप माता नहीं, बैरिन कहेंगे। लेकिन की आंखें फोड़ने वाले को आप क्या कहेंगे ? कन्या - शिक्षा का विरोध करना वैसा ही है जैसा अपनी संतति के चक्षु फोड़ने में ही कल्याण मानना । जो कन्याओं की शिक्षा का विरोध करते हैं, वे उनकी शक्तियों का घात करते हैं। किसी की शक्ति का घात करने का किसी को अधिकार नहीं है ।
जनवत्ता शिक्षा के साथ रात्संस्कारों का होना भी आवश्यक है। कन्याओं की शिक्षा की योजना करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि कन्याएं शिक्षिता होने से साथ-साथ सत्संस्कारों से भी युक्त हों और पूर्वकालीन योग्य महिलाओं और सतियों के चरित्र पढ़कर उनके पथ पर अग्रसर होने में ही वे अपना कल्याण मानें। यही बात बालकों की शिक्षा के सम्बन्ध में भी आवश्यक है। ऐसी अवस्था में कन्याओं की शिक्षा का विरोध करना, उनके विकास में बाधा डालना और उनकी शक्ति का नाश करना है।
प्रत्येक समाज और राष्ट्र का भविष्य कन्या- शिक्षा पर मुख्य रूप से आधारित है । कन्याएं ही आगे होने बाली माताएं हैं। यदि वे शिक्षित और धार्मिक संस्कार वाली हैं तो उनकी संतान अवश्य शिक्षित और धार्मिक रोगी। ये देवियां ही देश और जाति का उत्थान करने में महत्त्वपूर्ण भाग लेने वाली हैं । एक सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ के यानुसार :
'यदि किसी जाति की भविष्य संतानों के ज्ञान, आचरण, उन्नति और अवनति का पहिले से ज्ञान करना है तो उस समाज की वर्तमान बालिकाओं की शिक्षा, संस्कार, आचार और भाव प्रणालियों को देखो ये ही भाव
केटा के ढांचे हैं।'
सी ही बच्चे की प्रथम और सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षिका है। उसके चरित्र का गठन करने वाली भी वही दृष्टि से की समस्त राष्ट्र की माता हुई। समाज के वृक्ष को जीवित और सदैव हरा-भरा बनाए रखने के ए पतिकाओं की शिक्षा अत्यन्त ही आवश्यक है। श्री ऋषभदेव जी आदि ६३ शलाका पुरुषों को जन्म देकर परम संरकार और चरित्र प्रदान करने वाली महिलाएं ही थीं । प्राचीन जैन इतिहास में स्पष्ट है कि जैन महिलाओं ने सदर समपूर्ण कार्य किये हैं। महारानी कैकेयी ने युद्ध के समय महाराज दशरथ की अनुपम सहायता कर अपूर्व सारस और बीरव का परिचय दिया । सती द्रौपदी ने स्वयंवर के पश्चात् समस्त विद्रोही राजाओं के विरुद्ध अनिर्धारित यह कार उनके दमन में अपने पति अर्जुन और भाई घृष्टद्युम्न की सहायता की थी । सती राजुल ने अत्मचर्य व्रत का पालन कर भारतीयों के लिए एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। पतिसेवा के लिए मैना