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लोगों के टोकने पर जो अपने-आपको दयालु प्रकट करता है, ऐसा नपुंसक तामसी अहिंसा वाला है। यह निकृष्ट अहिंसा है। इस अहिंसा की आड़ लेने वाला व्यक्ति संसार के लिए भार-स्वरूप है। वह कायर है और धर्म का, जाति का तथा संस्कृति का घातक है।
मित्रों! विवेक के साथ अहिंसा का स्वरूप समझो। क्रमशः अहिंसा का पालन करते हुए अन्त में पूर्ण अहिंसक बनों। ऐसा कोई व्यवहार मत करो जिससे तुम्हारे कारण धर्म की अप्रतिष्ठा हो। इसी में तुम्हारा और जगत् का कल्याण है।
सत्याग्रह
सकडालपुत्र ने भगवान् महावीर का धर्म अंगीकार कर लिया है, यह सुनकर उसका पूर्वगुरु गोशालक अपने धर्म पर पुनः आरूढ़ कराने के लिए उसके पास आया।
मित्रों! यह कह देना आवश्यक है कि जिसकी धर्म पर पूरी आस्था हो जाती है उसे फिर कोई डिगा नहीं सकता। महावीर के धर्म में और गोशालक के धर्म में एक बड़ा अन्तर यह था कि महावीर आत्मा को कर्ता मानते थे और संसार में इसी सिद्धान्त का प्रचार कर रहे थे, जब कि गोशालक इस सिद्धान्त से बिल्कुल अनभिज्ञ था। वह नियतिवादी था। उसका कहना था कि जो कुछ होता है वह होनहार अर्थात् भवितव्यता से ही होता है। सकडाल भी पहले इसी मत को मानने वाला था, परन्तु अब उसे इस पर विश्वास नहीं रहा था। अब वह दृढ़तापूर्वक यह मानने लगा था कि जो कुछ होता है, वह आत्मा के कर्म का ही फल है।
आत्मा को कर्त्ता मानने वाले भारत में और भी बहुत से धर्मनायक हो गये हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ऐसा ही उपदेश दिया था
उद्धरेदात्मनात्मानं, नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैवात्मनो वन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ।। अर्थात् हे अर्जुन ! अपनी आत्मा के द्वारा ही आत्मा का उद्धार करो। आत्मा ही अपना दन्यु और आत्मा ही अपना रिपु है।
गीता के इस उद्धरण से आप लोग समझ गये होंगे कि महावीर प्रभु के उपदेश में और श्रीकृष्ण के उपदेश में कितनी समानता है। 'अप्पा कत्ता विकत्ता य' का उपदेश 'उद्धरेदात्मनात्मन' से बिल्कुल निलता-जुलता
है।
इस सिद्धान्त के विरुद्ध होनहार को कर्ता मानने पर हमारे सामने एं मंचन उपलिई जाते हैं, जिनका निराकरण नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए, कल्पना की एक लड़का स्कूल में जाता है। प्रश्न यह है कि उसे पढ़ाने- लिखाने, प्रश्नोत्तर करने आदि के मना है? भविः गत मान लेने पर इस पर माथापच्ची की कुछ भी उपयोगिता नहीं रह गई। अ क विद्वान इंदर भवितव्यता के अनुसार स्वयं विद्वान हो जायेगा। पर लोकव्यवहार में
ह र त द लड़के को पढ़ाता है और लड़का स्वयं पुरुषार्थ करता है तब वह हटकन वन है "