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लोगों के लिए शोभा नहीं देता। यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी संस्कृति जो विश्व की नामान :
एक है परन्तु हम उसके महत्त्व को नहीं समझते। शायद हम उसके आदर्शों से अपरिचित अमिता : गीलिए इसमें ढीलापन एवं शिधिलता भी आई है। यही वजह है कि अपनी जमीन, संस्कृति पर्व परका म अनभिज्ञता की और जा रहे हैं। हम एक ऐसे नाजुक मोड़ पर खड़े हैं जहां हमारी सेहत ठीक ना नब्ज की पहचान भी नहीं है इसका मुख्य कारण है कि धरातल संतुलित एवं समतल नहीं अपितु अांतर्वासना समतल है, हम पटरी पर नहीं है किन्तु भटक गये हैं। और इन समस्त परिस्थितियों का जवाबदेत. मानव मा
___लोगों को मालूम होना चाहिए कि जिस विशाल भवन में उनका निवास है यदि उस भवन की नीर आधार गड़बड़ाया हुआ हो तो उसका कभी भी खिसकना तय है, और जब भी खिसका तो उस भवन में करने वालों का जीवन खतरे में पड़े विना नहीं रहेगा तो ऐसी परिस्थितियों में समय के पूर्व कोई तिमान पन: सावधानी एवं चेतावनी दिलाकर सुरक्षित स्थान में पहुंचने का उपाय बताए तो वह पुरुप कितना उपकारी कहा नहीं जा सकता?
ठीक इसी प्रकार आचार्य प्रवर ने सावधानी दिलाते हुए कहा था कि लोगों को धर्म का वरपर समझ में आ जाए तो दुनिया के किसी भी व्यक्ति की यह हिम्मत नहीं हो सकती कि वह धर्म के नाम पर कि: की परिस्थितियों को खड़ी करके अपनी निरंकुशता एवं स्वच्छन्दता का साम्राज्य फैलाने का साहस कर सके।
आज संविधान में से धर्म हटाने की बात कही जाती है- आखिर धर्म को राजधर्म बनाकर न्य करना चाहते तो क्या अधर्म को कायम करके राज चलाना चाहते हैं ?
धर्म के स्वरूप को समझने में फर्क हो सकता उसके अनुपालन में अन्तर हो तो उसका अली भवारा कौन कर सकता है।
हमारे सारे गुणों की अभिव्यक्ति धर्म से होती है। जब हमारा संविधान बना तो 'मेयर नाम : द नहीं था। हमारे देश में राज सेकलर रहे सब चाहते हैं, लेकिन उसकी परिभाषा क्या हो ? उपर आ ? यह किसी ने नहीं सोचा। उसका अनुवाद 'धर्म-निरपेक्ष' किया गया।
'धर्म निरपेक्ष' के अर्ध को समयोचित समझ के राजनीतिज्ञ पंडित उसकी अपने अपने रंग : १. आर इसको लेकर विवाद एवं मतभेद की दीवारें जिस तरह से लोगों के बीच मेंपली की ना . ' सदुभाग्यपूर्ण है। लेकिन युगदृष्टा-युगपुरुप आचार्य श्री जवाहरलालजी म.सा. के दृषिको " ५. व्याख्याकारों के समक्ष रखा जाता तो आज जो 'धर्म-निरपेक्षता' को लेकर दे
". जी है, उसे आसानी से मिटाया जा सकता था।