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धर्म एवं धर्मनायक : एक अनुचिन्तन
. राजेन्द्र सूर्या
युगदृष्टा, युगपुरुष, श्रमण संस्कृति के जाज्वल्यमान नक्षत्र स्व. श्रीमद् जवाहराचार्य के उदय से समाज में नवजागरण के युग का शुभारम्भ हुआ। उन्होंने अपनी अनूठी सूझबूझ एवं बौद्धिक प्रतिभा से सूक्ष्मता में गहरे उतरकर सैद्धान्तिक क्रान्ति का बीजारोपण किया । तीर्थकरों से सुमेल बैठाने वाला उनका अद्भुत चिंतन बेजोड़ है। उनकी प्रखर इतिहास-दृष्टि, उनका गूढ़ साहित्य-चिन्तन, उनकी निर्मल आध्यात्मिक अनुभूतियाँ, एवं उनका तर्क-सम्मत शास्त्रीय विवेचन उनके प्रवचनों के रूप में एक अनमोल थाती की तरह हमारे पास उपलब्ध है। इन सब बातों का सम्यक् विवेचन एक छोटे से निबंध में सम्भव नहीं है, अतः यहां हम उनके 'धर्म और धर्मनायक' से सम्बन्धित विवेचन पर ही विशेष रूप से विचार करेंगे।
आचार्य श्री जवाहर ने 'धर्म एवं धर्मनायक' की बड़ी मार्मिक विवेचना की है। उन्होंने धर्म के स्वरूप, परिभाषा व्याख्या उसकी उपयोगिता, सार्थकता एवं वैज्ञानिक महत्व के अतिरिक्त उसके प्रयोगों के मुख्य-मुख्य बिन्दुओं पर विवेचन किया है। इसके साथ ही धर्मनायकों के गुणों एवं उसकी क्षमताओं पर विस्तृत प्रकाश डाला है।
आचार्य प्रवर ने 'धर्म एवं धर्मनायक' पुस्तक में गहरे उतरकर जो अनूठी व्याख्या अपनी अद्भुत सूझबूझ से प्रस्तुत की है उस पर खुलकर स्पष्ट रूप से चर्चा क्यों नहीं की जाती है ? आखिर हमारे सारे गुण तो धर्म से ही अभिव्यक्त होते हैं।
___ धर्म की जिस व्यापक दृष्टिकोण के आधार पर उन्होंने परिभाषा की है उसके विस्तृत आयामों पर विवेचना प्रदान की है उसके महत्त्व को लोगों के सामने लाना चाहिए। यद्यपि सैद्धान्तिक मामलों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग रूप से प्रकट हो सकती है, परन्तु जिस अभिव्यक्ति से शास्त्र-सम्मत दृष्टिका सर्वमान्य रूप से उभर कर आए उसके लिये तो कम से कम प्रत्येक प्रबुद्ध बुद्धिजीवी वर्ग को विश्व मंगल-एक विश्वहित की भावना से उसके महत्त्व को सर्वत्र प्रसारित करने के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिये । परन्तु एसा न९. है बल्कि व्यर्थ के मतभेदों को उभार कर विवाद को गहराया जाता है तथा उन आध्यात्मिक, मूल्यपरक ए. मानवतावादी दृष्टिकोणों की उदार विचारधारा को अपनी क्षुद्र संकीर्णताओं के दायरे में रखकर कल्याणकारा एक * मंगलकारी परम पावन विचार विन्दुओं से दुनियां को वंचित रखा जाता है। धर्म कल्पवृक्ष है और उसक वज्ञान, *महत्त्व को समझकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाविष्ट करना चाहिये, परन्तु धर्म की परिभाषाआ स 'व्याख्याओं एवं उसके आयामों से लोग कितने अनभिज्ञ एवं अपरिचित से हैं, लोगों को इसकी कितनी जानकार - इसका पता तब चलता है जव राष्ट्रीय स्तर के शीर्पकों का ऐसा दृष्टिकोण उभर कर सामने आता है, जिस पर
जिसे कहना
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