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से प्रभावित थे। दैनिक व्याख्यान में धार्मिक, नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि विषयों पर अधिकार पूर्ण विश्लेषण करते थे ।
आपने विपुल साहित्य का सृजन किया । ग्रामधर्म, नगरधर्म, राष्ट्रधर्म पर लिखा साहित्य आपकी अनुपम देन है। साथ ही अपने ‘सद्धर्म मण्डनम्' 'अनुकम्पा विचार' जैसे महान ग्रन्थों की रचना की । आगमों पर आपकी टीका बेजोड़ है। आपके व्याख्यानों का संग्रह श्री जवाहर किरणावलियों के ५० भागों में प्रकाशित है। उनका साहित्य जैन साहित्य के भण्डार की अमूल्य निधि है ।
आपका दैनिक जीवन अत्यन्त व्यस्त रहता था । प्रातः वे व्यायाम, ज्ञान-ध्यान, प्रार्थना व साधुत्व की अन्य क्रियाओं में व्यस्त रहते थे । प्रतिबोध, आगन्तुकों से भेंटवार्ता के लिये भी समय निकाल लेते थे। कथनी करनी में इतना एकाकार था कि छोटे से छोटे साधु के दिल में भी नहीं आता था कि इतनी बड़ी सम्प्रदाय के आचार्य का जीवन साधु मर्यादा से भिन्न है ।
आप श्री की हमारे परिवार के प्रति अनन्य कृपा थी । पूज्य बाबूजी श्री भैरोदानजी व पूज्य पिता श्री जेठमलजी सेठिया उनके अनन्यभक्त व श्रद्धालु श्रावक थे । सेठिया ग्रन्थालय द्वारा जैन साहित्य सम्बन्धित करीब डेढ़ सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई, जिनके वे प्रेरणा-स्रोत थे। पूरा परिवार उनके प्रति निष्ठावान था । मेरा अहोभाग्य है कि उनके दर्शन, प्रवचन, सान्निध्य का शुभावसर मिलता रहा । इतिहास साक्षी है कि लोकाशाह के बाद संत परम्परा में क्रान्तिकारी के रूप में श्री जवाहर का नाम ही सर्वोपरि आएगा।
अंतिम समय में आप अस्वस्थ रहे। वि.सं. २००० की आसाद शुक्ला अष्टमी को भीनासर में इस नश्वर शरीर को त्याग कर महाप्रयाण किया । युगों-युगों तक जनमानस उनके महान उपकार को नहीं भूल सकता । अपने जीवन काल में ही आपने अपने उत्तराधिकारी के रूप में श्री गणेशीलालजी म.सा. के सशक्त कंधों पर यह भार सौंप दिया था। जिन्होंने संगठन धर्म और समाज हित में अपनी पदवी, सम्प्रदाय तक समर्पित कर दी। आप श्रमण संघ के उपाचार्य बने पर अनुशासन प्रिय आचार्य ने जब शिथिलाचार, को बढ़ावा मिलते देखा तो आपने सांप की केंचुली की तरह इस पद का भी परित्याग कर दिया। आपने भी अपने उत्तराधिकारी के रूप में श्री नानालालजी म.सा. को अधिकृत किया । आचार्य श्री नानेश के शासन में सैंकड़ों मुमुक्षु चरित्र आत्माओं ने आपसे जैन प्रवज्या अंगीकृत की। हजारों अछूत जाति के लोगों को सुसंस्कारी बनाकर उन्हें धर्मपाल की संज्ञा दी।
आचार्य श्री जवाहर हमारे बीच में नहीं है, पर आज भी उनकी जन कल्याणकारी सेवाएं इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है । उनके ज्ञान का प्रकाश भू-मण्डल पर प्रकाशमान है।
स्वर्ण जयन्ती के इस पावन प्रसंग पर हम उनके चरणों में कोटि-कोटि वन्दन कर श्रद्धा के पुष्प अर्पित
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करते हैं ।