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समाज और श्रावक : आचार्य दृष्टि में
- डॉ. वहादुरसिंह कोचर
युग-प्रधान, क्रान्तिदर्शी, ज्योतिर्धर, प्रेरणास्रोत, वहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, सामाजिक चेतना के उनायक, सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलक जैनाचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज की ५० वीं स्वर्गारोहण निय आपाढ़ शुक्ला अष्टमी विक्रम सम्वत् २०५० का दिन हम सबके लिए उनकी निर्मल, निश्छल एवं निडर विचार-माने में गहरे गोते लगाने और अनुयायी श्रावक के रूप में स्वयं का मूल्यांकन करने का एक सर्वोत्तम समय है।
आचार्यश्री ने दहेज-प्रथा, बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह, अनमेल-विवाह, मृत्यु-भोज, फैशन-परस्ती, ऐल्या. हरामखोरी, धार्मिक ढोंग-आडम्बर, सूदखोरी, विदेशी संस्कृति की मोहांधता, छुआछूत, निर्धनता, गन्दगी, कायला गुलागी, अभिमान, मोह, वैर तथा नारी और विशेष रूप से विधवा नारी के प्रति दुर्भावमूलक वातावरण : अनकानेक सामाजिक प्रश्न-प्रसंगों पर अपनी ओजस्वी, प्रखर एवं निडर वाणी एवं लेखनी से समय-समय पर जन-जन को जागृत करने का अथक प्रयास किया था। समय आ गया है जब हम सोचे कि हम कहाँ तक जागृत ६. हम अपना मूल्यांकन करें कि हम इन सामाजिक बुराईयों से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कितना मुक्त हो पाये।
जारहत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु समुदाय का सम्यक-ज्ञान, सम्यक-दर्शन एवं सम्मका साधु-साध्वी, श्रावक एवं श्राविका चतुर्विध संघ के लिए सदा सर्वदा सहयोगी एवं पथ-प्रदर्शक प्रमाणित बार भूल-भटके व्यक्ति एवं समुदायक को सही समय में सही स्थल पर पहुँचाने वाला होता है, समाज पाक एवं कार्मिक इकाइयों को मार्मिक भावनाओं से स्पंदित कर देने वाला तथा लोक संचेतना को समाजका
। लाता है। ऐसी ही एक दिव्यात्मा, भव्यात्मा, लोकात्मा और विश्वात्मा धे आचार्यश्री, जिन्न :
या से लेकर ६८ वर्ष की जरावस्था तक अपने जीवन के ५२ वर्ष विक्रम सम्बत् १९४८ सम्बत् २००० स्वर्गारोहण वर्ष तक देश के कोने-कोने में शहर-शहर में गाँव-गौच और गर्मी -यून कर जन-जन को सामाजिक अन्धरूढ़ियों से मुक्त करने. उन्हें सही मार्ग पर चलने न जाव हिंसा को छोड़ने और समाज के दीन-दलों की सेवा साधना में समस्त जीवन : " अपन प्रवचनों और निवन्धों से प्रदान किया उससे मानव समाज तद तक उप
: मिरे विचारों को अपने जीवन में नहीं उतारेगा।
एम-घूम कर
सारन अपने प्रवचनों और निवन्धा सप्र