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-मण्डनम', 'अनुकम्पा विचार' जैसे शास्त्र-सम्मत ग्रन्थ तैयार किये। जैन साहित्य के भण्डार में अपूर्व कृतियों का में इन ग्रन्थों का अपना महत्त्व है।
उस समय पंडितों से साधु-साध्वियों को अध्ययन करवाने की परम्परा नहीं थी। आपने इस कमी को अनुभव किया। अपने साधु-साध्वियों को संस्कृत, प्राकृत आदि का अध्ययन करवाया। पंडित रत्न श्री गणेशीलालजी म.सा. घासीलालजी म.सा. आदि विद्वान साधु तैयार किये । यद्यपि प्रारम्भ में उन्हें समाज व साधु समाज का विरोध भी सहना पड़ा। उनकी मान्यता थी कि जब तक साधु समुदाय खुद तैयार नहीं होंगे अन्य साधु-सादियों को विद्याध्यन कराने में कैसे सहायक हो सकते हैं। और न ही वे उपदेश देने के अधिकारी हो सकते हैं।
स्त्री समाज को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता था। अनेक रूढ़िया घर किये हुए थी। पति की मृत्यु के पश्चात् उसे एक कोने से एक स्थान पर महीनों बैठना पड़ता था। काले वस्त्र पहनने पड़ते थे। अनादर और हीन भावना थी। इन पर होने वाले अन्याय व अत्याचारों का घोर विरोध किया। आपने कहा—इस समय उन्हें धर्म की ओर गोड़ने की आवश्यकता है। प्रेम और साहनुभूति की जरूरत है। काले वस्त्रों के स्थान पर सफेद वखों का प्रतिपादन किया। एकान्तवास के स्थान पर धर्म स्थानों में आने की प्रेरणा दी। उनका अभिमत था कि अगर गाई का एक पहिया कमजोर होगा तो गाड़ी गतिशील कैसे हो सकती है।
अल्पारम्भ और महारम्भ पर उन्होंने विस्तारपूर्वक अपनी बात रखी। समाज में अनेक गलत धारणाएं ... पाली हुई थी। आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव ने जन जाति को जीने की कला सिखाई। उन्हें कैसे जीना चाहिये . गृहस्थ धर्म को चलाने के लिये क्या कुछ करना चाहिये उसका प्रतिवोध दिया। आपश्री ने भी समाज को सही ढंग • जाने की कला का प्रतिवोध और मार्ग-दर्शन किया। खेती को महापाप बताने की मिथ्याधारणा पर अपने सपाट
तक-रांगत विचार रखे। निर्भीक रूप से अपनी मनरथ भावनाओं को रखा । आपने कहा-अल्पारम्भ और मार पं. लिये अन्तर के विवेक की आवश्यकता है। विवेक द्वारा महारम्भ से बचा जा सकता है। अविवेक, से अल्लारभ .भा महारग्भ हो सकता है। अल्पारम्भ-महारम्भ की इतनी विशद सुन्दर अकाट्य व्याख्या आपके गहर चिन्तन का . पल थी।
उन्होंने देखा कि जैन धर्मावलम्बी अहिंसा पर आस्था रखने वाले लोग चर्वी लगे वस्त्रों का उपयोग करते १, जो धावक धर्म के सर्वधा विरुद्ध है। साध-साध्वियां भी वे ही वस्त्र लेती थी जो उन्हें गृहस्यों से मिल जाते।
पर अपने प्रवचनों में इसका विरोध किया। परिणाम स्वरूप सामहिक रूप से धावक श्राविकाओनमा :: वसा का त्याग किया। रेशमी वस्त्र तो किसी रूप में भी ग्राहय नहीं। लोगों ने खादी को अपनाया। पीक - बाज उनकी सम्प्रदाय के साध-साध्वी शद्ध खादी के वस्त्र ही लेते हैं।