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सर्व संभारी संभारीने गुर्वादिक पासे ) वह सर्व स्मृति करके गुरु आदिके समीप (आलोइ) आलोचन करके (पडिक्कमी) प्रतिक्रमण करके (निंदी) आत्मशाक्षिसे निंदा करके (गरहि) गुरुकी साक्षिसे गहना करके (निशल्य थईने) फिर शल्यसे रहित होकर (सव्वं पाणाइवायं) सर्व प्रकारसे प्राणातिपातका (पञ्चक्खामि) मै प्रत्याख्यान करता हू (सव्वं मुसावायं) सर्व प्रकारसे मृषावादका (पञ्चक्खामि ) प्रत्याख्यान करता हू (सव्व अविनादाण पञ्चक्खामि ) सर्व प्रकारसे अदत्तादान [चोरी ] का प्रत्याख्यान करता ह (सव्वं मेहुणं पञ्चक्खामि) सर्व प्रकारसे मैयुन कर्मका प्रत्याख्यान करता हू ( सव्वं परिग्गहं पञ्चक्खामि ) और सर्व प्रकार परिग्रहका भी प्रत्याख्यान करता हू ( सव्वं कोह ) सर्व प्रकारसे क्रोध (माण) मान (माया) छल ( लोभ) लोभको (जावमिच्छा सण सल्लं) यावत् मिथ्या दर्शन शल्य पर्य्यन्त अष्टादश पापोंको छोड़ता हू, तथा (सव् अकरणिजं) सर्व प्रकारसे अकरणीय कृतोंका (पञ्चक्खामि ) मै प्रत्याख्यान करता हूं (जावनीवाय) यावज्जीव पर्यन्न (तिविह ) तीन करण और (तिविहण) तीन योगोंसे जैसेकि-(न करेमि) न करू (न कारवेमि ) नाही औरोसे कराऊ ( करतंपि नाणुजाणामि) जो अकृत्य कार्य करते है उन्होंकी अनुमोदना भी नहीं करू (मणसा) मन करके (वयसा) वचन करके (कायसा) काया करके (एम अठारे पाप स्थानक पच्चवखीने ) इस प्रकार अष्टादश पापस्थानकोंका प्रत्याख्यान करके फिर (सव्व ) सर्व प्रकारसे (असण) अन्न (पाणं) जल (खाइम) मेवादि (साइमं) मुखवास प्रमुख ( चउव्विहपि आहार पञ्चक्खामि) इन चारोंही आहारोंका प्रत्याख्यान करता हू (जावजीवाय) यावज्जीव पर्यन्त। फिर (जंपिय इमं सरीरं) जो प्रिय है यह प्रत्यक्ष मेरा शरीर (इछ) इष्ट कारी है (कंत्त) कातियुक्त है (पीय) प्रीतियुक्त है (मणुन्न) मनोज्ञ है (मणाम) अत्यन्त मनोज्ञ है (धिनं) धैर्य रूप है (विसासियं) विश्वा
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