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भागी सिद्ध किया हो (रहस्सा भक्खाणे) किसीकी रहत्य वार्ता प्रगट करी हो (मदारमंत भेए) खनाराका मंत्र भेद किआ हो जैसेकि-स्त्रीकी मर्मयुक्त वार्ताका कयन करना (मोनोवएसे ) अन्य आत्माओंको मृपा भाषण, करनेका उपदेश दिया हो (कूड़ लेहकरणे) कूट [ असत्य ] लेख लिखा हो (नम) उस (मिच्छा मि दुकडे) अविवार रूप पापसे मैं पीछे . हटना हूँ ॥
भावार्य-द्वितीय अनुव्रतमें स्यूल मृषावाद बोलनका परित्याग किया जाता है जिसमें कन्यालीक गवालीक भूमालीक स्थापन मृया कूट शासि . इत्यादि प्रकारके असत्य भाषणका द्विकरण त्रियोगसे प्रत्याख्यान करे। फिर उक्त अनुवाकी रखाके वास्ते पांच अतिगारोंका भी परित्याग करे जैसेकि-विवारशून्य होकर किसी पर दोषारोपण करना १, कितीके मर्मयुक्त भेदको प्रगट करना २, त्वद्वारा मंत्रभेद करना ३, अन्य आत्माऑको मृषा भाषण करनेका उपदेश देना ४, कट लेख लिखने ९, वह पांच ही अतिवारन दोष द्वितीय अनुक्राको रसाने वाले दूर करे, इनके , प्रत्यक्ष फनसे लोग अनभिज्ञ नहीं हैं इसी लिये ही इनका विशेष अर्थ नहीं लिखा है।
अथ तृतीय अनुव्रत विषय ॥ तीजा अणुवन झूठाउ अदिनादाणार. वेर. मगं खानर खणो ५ गोठड़ो छोड़ो २ तालापडि कुंपो ३ वाट पाड़ो ४ पड़ी वस्तु धणीयाली जाणो ५ इ.. त्यादिक मोटका अदत्तादाण लगा सम्बन्वि व्यापार सम्बन्धि तथा पड़ो निर्धनो वस्तु ते उपरान्त मो. टका अदत्तादाग लेवाना पत्रक्खाण जावजोय दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणमा वयसा