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________________ क्खाण जावजीवाय दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमिमणसा वयला कायसा एहवा बोजा थूल मूषा-वाद विरमण व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंज्जहा ते आलोउं सहस्सा भक्खाणे रहस्सा भक्खाणे सदारमंत भेए मोसोवएसे कूड़ लेह करणे तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥२॥ हिंदी पदार्थ-(बीजु अणुव्रत) द्वितीय अनुव्रत (थुलाउ) स्थूल [मोटा] (मोसावायाउ) मृषावादसे (वेरमणं) निवृत्ति करता हूं जैसेकि(कन्नालिए) कन्या तथा वर सम्बन्धि असत्य जैसे किसीने विवाह सम्बन्धि वार्ता की तव वर कन्या सम्बन्धि असत्य भाषण करना तथा इसी प्रकार (गोवालिए) गो आदि पशुओं सम्बन्धि असत्य (भोमालिए) भूमिका सम्बन्धि असत्य (थापण मोसो) तथा स्थापन मृषा अर्यात किसीने अमुकके पास विनाशाक्षिओके कोई वस्तु स्थापन करा दी तो उसके लिए असत्य भाषण करना उसीका नाम स्थापन मृषा है (मोटकी कूडी साख) स्थूल कूट शाक्षि देना जैसेकि राज्यद्वारमें किसी कारणके एच्छा करनेपर असत्य भाषण करना (इत्यादिक मोटषं झूठ बोलवाना पञ्चक्खाण) इत्यादि स्थूल मृषावाद बोलनेका प्रत्याख्यान [नियम ] (जावजीवाय) यावत् जीव पर्यन्त (दुविहं) द्विकरण (तिविहेणं) त्रियोगसे जैसेकि (न करेमि) उक्त कारणोसे असत्य भाषण नहीं करू (न कारवेमि) नहीं औरोंसे कराऊ (मणसा) मनसे (वयसा) वचनसे (कायसा) कायसे, एहवा बीजा थूल मृषावाद विरमण बनके पंच अतिचार (नाणियवा) जानने योग्य है किन्तु ( न समायरियव्वा) आचरणके योग्य नहीं है (तज्जहा) तद्यथा जैसेकि-(सहस्सा भक्खाणे) विचारशून्य होकर अन्य आत्माओंके दोषारोपण किया हो वा अकस्मात् विनाविचारे अन्य जीवोंको दोषोके
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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