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इसी प्रकार जत्ता, मे, जवणिज्जं च भे, इन सूत्रोंके भी तीनर ही आवर्तन होते हैं-जैसेकि-प्रथम मंद स्वरके साथ "ज" अक्षर उच्चारण करे, फिर मध्यम स्वरसे "ता" ऐसे कहे, फिर ऊंचे स्वरके साथ हाथ मस्तकको लगाता हुआ "मे" ऐसे वर्ण उच्चारण करे। इन तीनों अक्षरोंसे प्रथम आवर्तन होता है। फिर "ज" " "णि" यह तीनही अक्षर पूर्वोक्त स्वरोंके अनुकूल उच्चारण करनेसे द्वितीय आवर्तन होता है। फिर "ज"च" "मै" इन तीन वर्णोंको पूर्वोक्त प्रकारसे उच्चारण करनेसे तृतीयावर्तन होता है । इस प्रकारसे षट् आवर्तन एक पाठसे होते है और दो वार उच्चारण करनेसे द्वादश आवर्तन हो जाते है, किन्तु द्वितीय वारके पाठमें "आवस्सियाए" ऐसे पाठ न पढ़े, अपितु सर्व सूत्र निम्न लिखितानुसार है ॥
इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिजाए नितोहियाए अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीही अहो कायं कायसंफासं खमणिज्जो मे किलामो अप्पकिलं. ताणं वहु सुभेण भे दिवसो वइक्कतो जत्ता भे जवणि ज्जं च भे खामेमि खमासमणो देवलियं वइक्कम आवसियाए पडिकमामि खमालमणाणं देवसियाए आ. सायणाए तितीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मण दुक्कडाए वय दुकडाए काय दुक्कडाए कोदाए माणाए मायाए लोहाए सव्व कालियाए सव्व मिच्छो क्याराए सव्व धम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे दे. वसिओ अइयारो कओतस्त खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिदामि अप्पाणं वोसिरामि ॥
हिदी पदार्थ-(खमासमणो) हे क्षमाके श्रमण शान्तिके समुद्र