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सव्वस्सवि देवसियं दुभ्भासियं दुचिंत्तियं दुचि. ठियं दुनिस्सियं अधिका ओच्छा पाठ पढ़या होय आगलनूं पाछल पाछलनूं आगल कोई खोटा अक्षर खोटी मात्रा बोला होय बोलाव्या होय जो मे देवसि अइयार को तस्त मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ___अर्थ-दिनमें यदि मैंने दुश्चित्वन किया हो दुष्ट भापण किया हो दुष्ट प्रकारसे वेठनादि क्रिया को हो पाठ अनुक्रमतापूर्वक पठन न किया हो तथा अशुद्ध पाठ पठन किया हो तो मै उन दोपोंसे पीछे हटना हूं अथवा वे मेरे अनिचाररूप दोप निष्फल हो ।
फिर नमस्कार मंत्र पढ़के कायोत्सर्गको सपूर्ण करे । ॥ इति प्रथम सामायिक आवश्यक
वश्यक सम्पूर्णम् ॥
फिर "तिक्खुत्तो" के पाठसे गुरु देवको बदना नमस्कार करके द्वितीय आवश्यक करे, जैसेकि-'लोगस्स उजोयगरे" इत्यादि पाठ पढ़के द्वितीय आवश्यक पूरा करके फिर तृतीय वंदना रूप आवश्यककी आज्ञा लेकर निम्न प्रकारसे तनीय आवश्यक करे ॥
(इच्छामि खमासमणो) का पाठ दो वार पढे किन्तु प्रथम वार जब निस्सहियाय ऐसा सूत्र आवे तब हाथ जोड़कर वैठ जावे, फिर षट्प्रकारसे
आवर्तन निम्न लिखितानुसार करे जैसेकि-प्रथम (अहोकायं) यह सूत्र पढ़ता हुआ तीन आवर्तन होते है, दोनों हाथ दीर्घ करके दशों अगुली गुरुके चरणों ऊपर लगाता हुआ मुखसे "अ" अक्षर उच्चारण करे, फिर दोनों हाथ मस्तकको स्पर्शन करता हुआ "हो" अक्षर कहे यह प्रथम आवर्तन है | इसी प्रकार “का" और "य" अक्षरोके उच्चारणसे द्वितीय आवर्तन होता है । फिर पूर्वोक्त विधिसे "का" और "य" अक्षरके कहनेसे तृतीय आवर्तन होता है ।।