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समित) पूरीष, मूत्र, थूक, श्लेष्म, स्वेद, मलादि जो गेरने योग्य वस्तु है उनको विना यत्न न गेरना, फिर (त्तिगुत्तो) त्रिगुप्त जैसोक मन, वचन, काया सो जो ३६ (छत्तीस गुणो होई सो गुरु मज्झ) गुणों करके युक्त है वे ही मेरे गुरु हैं।
भावार्थ--इस सूत्रमें यह वर्णन है कि देव गुरु धर्मका पूर्ण स्वरूप ज्ञात करके फिर समग्र प्रकारसे देव गुरु धर्मोपरि निश्चय करना यही सम्यक्त्व है और वही धर्म सत्य है जो सत्य पदार्थोंका सम्यक् प्रकारसे उपदेश है। पुनः अहिंसा सत्य परोपकार ब्रह्मचर्य क्षमा दया दान तप भाव मृदुता ऋजुभाव इत्यादि पदार्थोंका पूर्ण नीतिसे वर्णन करनेवाला है ॥ देव वही है जो राग द्वेषादि अंतरंग शत्रुओंसे मुक्त होकर सर्वज्ञ वा सर्वदर्शी हैं। गुरुका स्वरूप मूल सूत्रके पदार्थमें किंचित् मात्र लिख चुका हूं जैसेकि-अहिंसा, सत्य, दत्त, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, इनको धारण करनेवाले, मन, वचन, कायाको वश करनेवाले, क्रोध मान माया लोभको त्यागनेवाले, ज्ञान दर्शन चरित्रके पालनेवाले, पाच इन्द्रियोंको दमन करनेवाले, वैराग्य मुद्रा सौम्य प्रवृत्ति इत्यादि गुण करके जो युक्त है वही गुरु है। सो देव गुरु धर्मका पूर्ण विधिसे आराधन होना चाहिये ॥ इस सूत्रको पढ़के फिर श्रावक निम्न लिखित सूत्रको पठन करे।
अथ मूल सूत्रम् ॥ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिकमामि इच्छं इच्छामि पडिकमिउं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणकमणे बीयक'मणे हरियकमणे उसा उत्तिंग पणग दग मट्टीमकड़ा संताणा संकमणे जे मे जीवा विराहिया एगिदिया वेइदिया तेइंदिया चरिंदिया पंचिंदिया अभिहया व