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________________ दीपिका-निर्युक्ति टीका अ. सु. ६४ विनयरूवाभ्यन्तरतपसो भेदनि० ૩ मूलम् - विणए सत्तविहे, णाणदंसणचरित्तमणवइकायलोगोवयारभेयओ ॥६४॥ छाया - 'विनयः सप्तविधः, ज्ञान-दर्शन - चारित्र - मनो- वचः - कायलोकोपचारभेदतः ॥६४॥ तत्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्रे - प्रायश्चित्तविनय वैयावृत्यादि विधाभ्यन्तरतपसां प्रथमोपात्तस्य प्रायवित्तस्याऽऽलोचनप्रतिक्रमणादिदशभेदानां प्ररूपणं कृतम् सम्पति-- क्रममाप्तस्य द्वितीयस्य विनयरूपस्याभ्यन्तर तपसो भेदान् प्ररूपयितुमाह- 'विणए वत्तविहे' इत्यादि । विनयः - विनीयसेऽपनीयते क्षिप्यते ज्ञानावरणाद्यष्टविध कर्मरजोराशिर्येन स विनयः सप्तविधः ज्ञान- दर्शन - चारित्र - मनो - वचः - काय - लोकोपचारभेदतः । तथा च ज्ञानविनयः १ दर्शन विनयः २ 'विए सत्तविहे णाण' इत्यादि सूत्रार्थ - विनय सात प्रकार का है- (१) ज्ञान (२) दर्शन (३) चारित्र (४) मन ( ५ ) वचन (६) काय और (७) लोकोपचार ||६४ || पूर्वसूत्र में प्रायश्चित विनय वैयावृत्य आदि छह प्रकार के आभ्यन्तर तपों में से प्रायश्चित्त के आलोचन प्रतिक्रमण आदि दस भेदों का निरूपण किया गया, अब क्रमप्राप्त विनय नामक आभ्यन्तर तप के भेदों की प्ररूपणा करते हैं जिसके द्वारा ज्ञानावरण आदि आठ प्रकार का कर्म-रज विनीत किया जाय - हटाया जाय उसे विनय कहते हैं । वह ज्ञान, दर्शन, चारित्र, मन, वचन, काय और लोकोपचार के भेद से सात प्रकार है अर्थात् उसके सात भेद हैं, यथा-- (१) ज्ञानविनय (२) दर्शन 'fare सत्तविहे णाणदंसण' इत्यादि सूत्रार्थ - विनय सात प्रहारनो छे - ( १ ) ज्ञान (२) दर्शन ( 3 ) यारित्र (४) भन (4) वथन (१) अय भने (७) बोडीयार ॥६४॥ તત્ત્વાથ દીપિકા—પૂર્વસૂત્રમાં પ્રાયશ્ચિત્ત વિનય વૈયાવૃત્ય આદિ છ પ્રકારના આભ્યન્તર તપેામાંથી પ્રાયશ્ચિત્તના માલાચન પ્રતિક્રમણ આદિ દશ ભેદોનુ નિરૂપણુ કરવામાં આવ્યું, હવે ક્રમપ્રાપ્ત વિનય નામક તપના ભેની પ્રરૂપણા કરીએ છીએ આભ્યન્તર જેના વડે જ્ઞાનાવરણુ આદિ આઠ પ્રકારના ક-રજ વિનીત કરવામાં भावे—दूर १२वामां आवे तेने विनय हे छे. ते ज्ञान, दर्शन, व्यास्त्रि, भन, पथन, કાયા અને લેાકેાપચારના ભેદથી સાત પ્રકારને છે. અર્થાત્
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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