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दीपिका-नियुक्ति टीका अ. ७
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- छाया हिंसादिभ्यो विरति व्रतम् | १८/B-AGN
. १८-२४ विस्त्यदिव्रतनिरूपणम्
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मूल्य - तं लमओ देसओ मह अ
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छाया - तत् सर्वतो देशती, भद - च । १९
-धूप-सबओ अणगाररस, ते पंच दलओ, अगर ते
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बारस ||२०||
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छाया - सर्वतोऽनगारस्य, तानि पञ्च, देशवोऽवारिणः तिघरा । २० मूलम् - ताई बारस, अणुव्वय गुणव्वय- सिक्खायय क्षेत्रा छाया— तानि द्वादश पनि 'अणुत्र गुणव्रत- शिक्षा सलग १
'हिंसाई हितो चिरई
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- हिंसादिपापों से निवृतः ॥ १८ ॥ 'तं सन्देओ यहं अणू' ॥१९॥ सूर्य-चिरति दो प्रकार की सर्व पिरति । सर्वविरति को ही कहते हैं, देश विरति को अनाहते है
है ।
'लब्बभो अणगारस्त्र, ते पंच, देखभी आगरिस्ट) से चैक h सूत्रार्थ--सर्वविरति अनगार-साधु के होते है प देशविरति रूप ब्रन गृहस्थ श्रावक के होते हैं। वे बाहेर 'लाई वा अय, गुणव्यय-सिक्खाय ॥२१॥ समार्थ--अणुवन, गुणन और शिक्षायों के मे से के व्रत बारह प्रकार का है ॥२॥
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मूलमू- हिंलाई हितो विरई वय १८
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સૂત્રીય હિંસા આદિ પાપાથી નિવૃત્ત થવુ વ્રત કહેવાય છે
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,,, मूलम् - तं सङ्घबओ देसओ सह अणूय S 18. सुत्रार्थी - विश्ति से अधारनी है-सृर्व विरति भने हेरा विरति सर्व विरतिने મહાવ્રત કહે છે, દેશવિરતિને અણુવ્રત કહે છે. ૧૯ વરી હોય '''',,': मूलसू+, खबाओ, अणगाररस ते पंच, देखओ आगुरिस्ट, वे वारस ॥२०॥ સૂત્રા-સવિરતિ અણુગાર સાધુને હાય છે તે પાંચ છે દેશવિરતિ षि व्रत ग्रहस्था श्रवने होय. छे. ते बार होय
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मूलम् - ताई बारस, अणुव्ववय, गुणव्व- सिखावयभेया ॥२ सूत्रार्थ-भभुवंता, गुरुताने शिक्षाप्रत नागरथी श्रीवामा व्रत मार પ્રકારના છે. ા૨૧૫
त० ३२