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________________ मुखवस्त्रिका। [३७] - - मुखवस्त्रिका को मुख पर वांधने का प्रमाण देंगे । यदि पूर्व काल में मुखवस्त्रिका मुखपर न बांधी जाती तो ऐसे चित्र कैसे तैयार हो सकते थे ? और इस का मन्दिर मार्गियों के पास क्या जवाब है? वे इन चित्रों को झूठे प्रमाणित नहीं कर सकते। वाचक वर्ग ! चित्र नम्बर १ को देखिए । यह चित्र सन् १६११ की अप्रेल मास की 'सरस्वती के पृष्ठ २०४ के चित्र का ब्लाक तैयार होकर छपा है। यह चित्र सप्तदश आचार्यो का है। इसमें का बारहवां चित्र आदिनाथ अर्थात् भगवान् ऋषभदेव का है जिनके मुवारविन्द पर मुखवस्त्रिका बंधी हुई है । कई चित्र, चरित्र और कथा के आधार पर चरित्र नायक के देहावसान के पीछे भी तैयार होते है इसको हम मानते हैं। परन्तु चित्रकार लोग चित्र प्राचीन ग्रन्थों में जैसा वर्णन मिलता है उसी के अनुसार बनाते हैं । उसमें प्राकृति भले ही ठीक नहीं मिलती हो परन्तु वेप-विन्यास में कुछ फर्क नहीं रहता है। इसही प्रकार उपरोक्त चित्र भी काल्पनिक हैं परन्तु हमारा अभिप्राय केवल इतना ही है, कि पहले मुखवस्त्रिका मुहपर साधु सन्त वांधते थे तभी तो इस चित्रकारने भी मुंह पर मुखवस्त्रिका वंधे हुए चित्र का दृश्य दिखलाया। मुखवस्त्रिका मुंहपर श्रादिनाथ भगवान् को ऊपर हमने अपनी ओर से श्राचार्य नहीं लिखे हैं । यह भूल तो 'सरस्वती' सम्पादक की है। हमने तो चित्र जिस नाम से छपा उसको उमीके अनुसार केवल मुखवत्रिका के प्रमाणार्थ लिखा है।
SR No.010521
Book TitleSachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarmuni
PublisherShivchand Nemichand Kotecha Shivpuri
Publication Year1931
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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