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________________ मुख्वत्रिका। [३५] इस ही प्रकार मिस्टर ए, एफ रडलाफ होर्नले पी एच डी ने भी उपासक दशाङ्ग सूत्र का अनुवाद अग्रेजी में किया है, उस पुस्तक के पृष्ट ५१ पर १४४ वे नम्वर के नोट में उद्धत है'-"मुखपति, जिसको संस्कृत में मुखपत्री कहते है - र्थात् मुख का ढक्कन । जिससे, सूक्ष्म जीव उड़ने वाले मुख के अन्दर प्रवेश न कर सकें इस लिये छोटासा कपड़ा मुख पर वाधेते हैं, उसे मुखपति कहते हैं" ___ उपरोक्त प्रमाण कितने जबरदस्त हैं क्योंकि प्रथम तो उनके लेखक विदेशीय विद्वान है जिनको किसी का पक्ष नहीं दूसरा उन्होंने मन्दिर मार्गियों के यातियों (साधुओं) के लिय ही लिखा है । कहिये पाठक ? अव भी क्या मन्दिरमार्गी साधु एवम् श्रावक मुखवस्त्रिका को मुहपर वाधने से इनकार कर सकते है ? कभी नहीं। फिर देखिए । “ भारत वर्ष का इतिहास " तीसरे और चोथे स्टॅण्डर्ड के लिये । जिसके पृष्ट २६-२७ पर इस प्रकार का उल्लेख है: जनै मन और महावीर की कथा जैन मत जैनी के तीन रत्न और तीन अनमोल शिक्षा है। अर्थात् सम्यग् दर्शन सम्यग् शान और सम्यग् चरित्र! तीसरे रत्न में बुद्ध के पांच नियम है ! १ झूठ नही वालना २ चोरी नहीं करना ३ विषय वासना नहीं रखना ४ शुद्ध रहना _ ५ मन वचन और कर्म में स्थिर रहना ६ जीव हिंसा - नही करना ! पिछले नियमों को जेनी साधु बड़े यत्न से मानते ___ है ! कही छोटे से छोटे कीडों को भी वे दुख.न दें या मार न डाले इसलिए वे पानी को छान के पीते हैं ! और चलते समय
SR No.010521
Book TitleSachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarmuni
PublisherShivchand Nemichand Kotecha Shivpuri
Publication Year1931
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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