SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३४ ] मुखपत्रिका निषेध करनेवाले, नेत्र बन्द कर अरिहत का ध्यान करनेवाले सव श्रावकों को पोपादि व्रत करानेवाले, मुखवस्त्रिका से मुँह बांधनेवाले और पचन पाचन अग्नि आदि श्रारंभ से अलग रहनेवाले होते है । K जो बात शास्त्र सम्मत है और प्राचीन काल से प्रचलित है उसका वर्णन तो केवल जैन शास्त्रों में ही क्या किन्तु अन्य धर्मों के ग्रन्थों मे भी विशद रूप से मिलना है । पाठक ' श्रय तो श्राप जान ही गए है कि, वैष्णवों के ग्रन्थ भी मुख वस्त्रिका मुँहपर वार्धन की शहादत दे रहे हैं। इस से बढकर हमारी सत्यता का उदाहरण और क्या हो सकता है ? आप ही कहिए ? भिन्न २ मतावलम्बी यूरोपियन सज्जनों की साक्षी हम विदेशी विद्वानों एवम् भिन्न भिन्न मतावल - स्वियों की राय इस विषय में क्या है, यह प्रगट करना चाहते हैं " दुनिया के धर्म" नामक पुस्तक में जॉन मेडिक एल एल डी की सम्मति पृष्ट १२८ पर उद्धृत है कि, "यति" लोग अपनी ज़िन्दगी को निहायत मुस्तकिल मिजाज़ी से वसर करते हैं । और वे अपने मुँह पर एक कपड़ा बाधे रसते हैं जो कि छोटे २ कीड़े वगेर को अन्दर जाने से रोक देता है'। 1 • फिर भी देखिये । " एन्साइक्लोपीडिया ” नामक छटी पुस्तक के २६८ वै पृष्ट पर इस प्रकार लिखा है - " यति लोग अपनी जिन्दगी निहायत सत्र और इस्तकलाल के साथ बसर करते है। और एक पतला कपड़ा मुंहपर बाधे रखते है और एकान्त में बैठे रहते है "" ।
SR No.010521
Book TitleSachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarmuni
PublisherShivchand Nemichand Kotecha Shivpuri
Publication Year1931
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy