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देते थे । विक्रमीय सं० १९३१-३२ तक तो सभी गच्छवासी यति सवेगी लोग व्याख्यान देते, तब सुख - वस्त्रिका मुख पे बान्ध कर देते थे, वर्तमान काल में भी कतिपय गच्छवासी यति, संवेगी मुखपत्ती सुखपे बांध के देते हैं । उनमें से कितक के नाम तो ऊपर लिख चुके है । पाठकों ! आपको एक यह बात भी यहां पर समझा देना समीचीन समझता हूँ, कि सतत मुख वस्त्रिका मुख पै बांधने वालों का, और व्याख्यानादि देते समय वाधने वालों इन दोनों का मन्तव्य निर्सन्देह वायु कायिक और तदाश्रित त्रसजीवो की रक्षा करने का है । न की और कोई, दोनों ने इस विधि को संयम का मुख्य साधन माना है । और दोनों मुख पर बांधना आगमानुकुल मानते हैं । तो फिर इस प्रश्न पर वाद विवाद करना, कि व्याखनादि देते वक्त कुछ समय के लिये बांधना समीचीन और सतत बांधना समीचीन, यह सर्वथा व्यर्थ है । क्योंकि संयम के साधनों का अल्प या अधिक समय तक उपयोग किया जाय तो कदापि अनुचित नहीं है । जिनागमानूकुल उचित क्रियाओं का उचित ही फल होता है अनुचित फल कदापि नहीं हो सकता । जिस व्यक्ति ने थोड़ी देर के लिये मुखपत्ती मुख पै बान्ध के धर्म क्रियाएं की उस को थोडा लाभ और जिसने विशेष काल क लिये बान्ध के यत्नाचार का पालन किया तो उसको विशेप लाभ की प्राप्ति होती है । कुछ समय के लिये बांधना उचित मानते हैं तो सतत वांधने वालों को भी किसी हालत में आप बुरा नहीं कह सकते । साधारण मनुष्य की तो वात ही क्या ? किन्तु बड़े २ पढे लिखे प्रमाद के चक्कर में गिर जाते हैं । इसी लिये प्रमाद के प्रवेश करने के फाटक को ही सतत बन्द कर रखने में आप को हानि ही क्या है । जैन