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मरक-स्वर्ग-निरूपण
। ६४१ ] प्रालिंगन करना पड़ता है। जो इस जन्म में मूक पशुओं पर उनकी शक्ति से अधिक बोझ लादता है, उसे कंटकाकर्णि पथ में लाखों मान बोझ वाली गाड़ी रहींचनी पड़ती है और ऊपर से चाबुक की मार खानी पड़ती है। मदिरापान करने वालों को शीशे का उकलता हुधा रस, संडाली ले मुँह फाड़ कर पिलाया जाता है। जो इस भव में दूसरों को धोखा देता है, चोरी करता है उसे ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों ले गिरा-मिरा कर घोर वेदना दी जाती है। जो माता-पिता श्रादि वृद्ध जनों के हृदय को संताप देता है उसका हृदय भाले ले भेदा जाता है। इस प्रकार इस जन्म में जिस जीव ने जैसे कर्म किये हैं, उन्हीं के अनुसार अगले शक में उसे फल--भोग करना पड़ता है।
तीन पाप के परिणाम स्वरूप एकान्त दुःखमय नरक-भव प्राप्त करके तारकी भाणी अनन्त दुःख भोगते हैं। मूलः -जे पावकम्मेहिं धणं मणूसा,
समाययंती अमइं गहाय। पहाय ते पासपयहिए नरे,
वेराणु बद्धा नरयं उविति ॥ १२ ॥ छाया:-क्षे पाप कर्ममिधनं मनुष्याः, समादयति अमति गृहीत्वा ।
प्रदाय ते प्रासप्रवृत्ता नराः, वैरानुवदा नरकमुपयन्ति ।। १२॥ शब्दार्य:---जो मनुष्य कुबुद्धि धारण करके, पाप कर्मों के द्वारा धन उपार्जन करते हैं, वे कुटुम्ब के मोह-पाश में फंसे हुए लोग, कुटुम्बीजनों को इसी लोक में छोड़कर, पाए बांध कर नरक में उत्पन्न होते हैं।
भाष्यः-कुमति के कारण सेसारी जीव अनेकानेक पाप-कर्म करके धनोपार्जन करते हैं। वे पाप के भयंकर परिणाम की चिन्ता नहीं करते। किये हुप पापों का फल भोगना पढ़ेगा या नहीं, इतना भी विचार उनके अन्तःकरण में उत्पन्न नहीं होता। धन ही उनका प्रधान प्रयोजन है। कैसा भी कार्य क्यों न करना पड़े, बस धन मिलना चाहिए । इस प्रकार की विचार धारा कुमति या मिथ्याशान से उत्पन्न होती है।
आत्मा यद्यपि जगत के चेतन-अचेतन-सभी पदार्थों से निराला है, न उसके साथ कोई श्राता है, न जाता है और न श्रात्मा ही किसी के साथ श्राता-जाता है। जैसे धर्मशाला में अनेक पथिक इकटे हो जाते हैं, और फिर अपने-अपने गन्तब्य स्थानों को चले जाते हैं, उसी प्रकार एक कुटुम्ब में अनेक नर-नारी एकत्र हो जाते हैं
और अपना काल पूर्ण करके, अपने-अपने कर्मों के अनुसार विविध योनियों में चले जाते हैं। किसी का संयोग स्थायी नहीं है । यह सत्य इतना स्पष्ट है कि पद-पद पर उसका अनुभव होता है । फिर भी यह कितने आश्चर्य की यात है कि संसार के प्राणी इस सत्य को देखते हुए भी अनदेखा कर देते हैं और कुटुम्बी जनों के मोहपास में