________________
नरक-स्वर्ग-निरूपण उनाया जाता है । उन्हें महा शोक में निमग्न रहकर ही समय व्यतीत करना पड़ता है।
इस प्रकार क्षेत्रजा वेदनाएँ भोगते-भोगते नारकी जीव उकता जाते हैं, पर कमी विश्राम नहीं, कभी चैन नहीं, कभी श्राराम नहीं । निरन्तर वेदना, निरन्तर -व्याधि, निरन्तर मार काट और निरन्तर पारस्परिक कलह, ही उनके भाग्य में है।
तीसरे नरक तक परमाधार्मिक असुर पहुँचते हैं, उसले भाग वे नहीं जाते। फिर भी क्षेत्रजा वेदना और नारकी जीवों द्वारा श्रापल से दी जाने वाली वेंदना वहां
और भी अधिक होती है। जैसे जब नया कुत्ता पाता है तो पहल के लमस्त कुत्ते उस पर झपट पड़ते हैं उसी प्रकार नरक में उत्पन्न होने वाले नारकी पर पहले के नारकी बुरी तरह झपटते हैं और उसे घोर से घोर कष्ट पहुंचाते हैं। वे परस्पर में लातों से, धुसों से मारते हैं, विक्रिया से शस्त्र बनाकर एक दूसरे पर प्रहार करते हैं, मारामारी करते हैं। कहीं-कहीं नारकी जीव वजमय मुखवाले कीट का रूप धारण करके दूसरे नारकी के शरीर में पारपार निकल जाते हैं। नारकी के शरीर को चालनी के समान छिद्रमय बना डालते हैं। इस प्रकार सैकड़ों उपायों से नारकी आपस में
एक-दूसरे को विकराल पीड़ा पहुंचाते हैं । अतएव परमाधार्मिकों द्वारा दी जाने वाली . वेदना के अभाव में भी आगे के नरकों के नारकी अधिक दुःख के पात्र बनते हैं।
- मूलः जं जारिसं पुव्वमकासि कम्म,
। तमेव आगच्छति संपराए । एगंतदुक्खं भवमजाणिता,
वेदांत दुक्खी तमणंतदुक्खं ॥ ११ ॥
छायाः-यत्यादृशं पूर्वमकार्षीत् कर्म, तदेवागच्छति सम्पराये।
एकान्त दुःखं भवमर्जयित्वा, वेदयन्ति दु:खिनस्तमन त दूःखम् ॥ ११ ॥ शब्दार्थ:-जीव ने पहले जो और जैसे कर्म किये हैं, वहीं कर्म-उन्हीं कर्मों का फल उसे संसार में प्राप्त होता है । एकान्त दुःख रूप भव-नारक पर्याय-उपार्जन करके के दुःखी जीव अनन्त दुःख भोगते हैं। . भाष्यः-नारकीय यातनाओं का जो कथन ऊपर किया गया है, उससे यह आशंका हो सकती है कि आखिर नारकियों को इतना भषिण कष्ट क्यों भोगना पड़ता है ? क्या उन्हें उस दुःख से छुड़ाया नहीं जा सकता ? इलका समाधान करते हुए सूत्रकार कहते हैं जिस जीव ने पूर्व भव में जैले कर्म किये थे उसे उस कर्म के अनुरूप ही फल की प्राप्ति होती है । जो दूसरों को सताता है वह स्वयं दूसरों ले सताया जाता है । जो अन्य को पीड़ा पहुँचाता है उसे अन्य जीव पीड़ा पहुँचाते हैं। जो इतर प्राणियों का मांस पकाकर अपनी जिह्वा को तृप्त करता है, उसका मांस भी पर भव में पकाया जाता है। जो पर स्त्री को विकार की दृष्टि से देखता है और उसका आलिंगन करता है उसे नरक में जलती हुई फौलाद की पुतलियों का प्रगाढ़