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नरक- स्वर्ग-निरूपण वेयरणि णिरयपाला गेरइए उपवाहति ॥ कप्पंति' कर करहिं तच्छिति परोप्परं पर सुपहिं । सिंबलि तरुमारुन्ती खरस्सरा तत्थ नेरइए॥ भीए य पलायंते समततो तत्थ ते - णिरुमंति। पसुणो जहा पसुबहे महघोसा तत्थ रणरइए ।
-सूयगडांग नियुक्ति. ७०-६४ । अर्थात् अब नामक परमाधार्मिक अपने भवनों से नरक में जाकर नारकी जीवों को शूल आदि के प्रहार से कष्ट पहुँचा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैंक देते हैं, उन्हें इधर-उधर घुमाते हैं और श्राकाश में उछाल कर नीचे गिरते हुए नारकियों को पीड़ा पहुँचाते हैं । गला पकड़ कर भूमि पर पटक देते हैं।
पहले मुद्गर श्रादि द्वारा और फिर तलवार आदि द्वारा उपहत होने के .. कारण नारकी जीव मूञ्छित हो जाते हैं। फिर कर्पणी नामक शस्त्र के द्वारा अम्बरिसी उनका छेदन करते हैं और उन्हें चीर डालते हैं। यह नरकपाल नारकी जीवों को चीर कर दाल के समान अलग-अलग टुकडे कर डालते हैं।
श्याम नामक परमा धार्मिक तीव्रत्तर असातावेदनीय के उदय वाले उन अभागे नारकियों के अंगोपांगों का छेदन करते हैं, पर्वत्त पर से नीचे बजाभूमि पर पटकते हैं, शूलं मादि से वेध डालते हैं, सुई आदि ले नाक श्रादि छेद देते हैं और रस्सी आदि से बांध देते हैं। इस प्रकार वे नारकियों को शातन, पातन, छेदन-भेदन और बंधन श्रादि के अनेक कष्ट पहुँचाते हैं।
सवल नामक नरकपाल नारकी जीवों की अंतड़ियां काट कर फेंफड़े को, हदय को और कलेजे को चीरते हैं तथा पेट की अंतड़ियों को और चमड़े को खींचते हैं।
अपने नाम के अनुसार अत्यन्त क्रुरता पूर्वक पीड़ा पहुँचाने काले रौद्र नामक नरकपाल नारकियों को तलवार, शक्ति आदि नाना प्रकार के तीखे शलों में पिरो देते हैं।
उपरुद्र नामक परमाधार्मिक नारसी जीवों के लिर, भुजा, जांघ, हाथ पैर श्रादि टांगों और उपांगों को तोड़ते हैं और बारे ले उन्हें चीर देते हैं। पाप कर्म में भासह यह नरकपाल सभी प्रकार की यातनाएँ देते हैं।
काल नामक नरकपाल दीर्घचुल्लो-भठी, शुंठक, कन्दुक, प्रचण्डक श्रादि नाम वाले अतिशय संतापकारी स्थानों में नारकियों को पकाते हैं । तथा ऊँट के श्राकार वाली कुंभी में एवं लोहे की कढ़ाई में डालकर जीवित मछली की तरह पकाते हैं।
. पाप-रत महाकाल नामक परमाधार्मिक नारकियों को काट-काट कर कौदी के वरावर मांस का टुकड़ा बनाते हैं, पीठ की चमढ़ी काटते हैं और जो नारकी पूर्व सव में मांस भक्षण करते थे उन्हें उनका ही. मांस दिलाते हैं।