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लत्तरहवां अध्याय
[ ६३३ ] अंवे अंबरिसी चेव, सामे य लवले वि य । रोदोवरुद्द काले य, महाकाले त्ति पावरे ॥ श्रलिपत्तेघणुं कुंभी, वालु वेयरणीवि य ।
खरस्सरे महाघोले, एवं परापरलाहिया ॥ - अर्थात्-(१) बारव (२) अम्बरीष (३) लम (४) शवल (५) रौद् (६) उपरौद् (७) काल (८) महाकाल (६) अस्थिर (१०) पत्रधनुष (११) कुंभी ( १२ ) बालुका (१३) वैतरणी (१४) खरस्वर और (१५). महाशेप, यह परमाधार्मिक असुरों के पन्द्रह भेद हैं।
___यह श्रासुर नारकी जीवों को जो वेदना पहुंचाते हैं, उसका संक्षेप में, निम्नलिखित गाथाओं में वर्णन किया गया है:
धाति य हाति य, हणति विघंति तह निसुंभीत। मुंचंति अम्बर तले, अख्या खलु तत्थ नेरइया ॥ श्रोहयये ये तहियं, णिसन्न कप्पणीहि कप्पति । विदुलग चडुलगच्छिन्ने, अंबरिसी तत्थ नेरइए ॥ साडण पाडण तोडण, बंधणरज्जुल्लयप्पहारेहिं। सामा णेरइयाणं पवतयंती अपुरणाणं ॥ अन्तगय फिटिफ साणि य हियय कालेज फुप्फु से वम्के । सबला ऐरइयाणं कड्ढेति तहिं अपुराणाणं ॥ असि सत्ति कुंत तोमर सूलति सूलेसुसूरचिय गासु। पोयंति रुद्धकम्मा उ रगरगपाला तहिं रुद्धा॥ भंजति अंग मंगाणि ऊरू वाहू सिराणि कर चरणे। कप्पेति कप्पणीहिं उवरुद्धा पाव कम्मरया । सरािसु सुंठएमु य कंजूसु य पयंडएसु य पयति । कुंभी य लोहिएतु य पयंति काला उ गरइए ।। कप्पंति कागिणी मंलगाणि छिदति सीह पुच्छाणि । खावति य गरइए महाकाला पावकम्मरए । हत्थे पाये ऊरू, बाहुलिरापास अंग मंगाणि । छिदंति पगामं तु असि. गरइप निरयपाला ॥ करणोहणास कर चरण दसएट्टण फुग्ग ऊरु वाहण। छेयण भेयण खाजण असिपत्त धणूहिं पाडति ।। कुंभीलु य:पयणेस्तु य लोहि यसु य कंदुलोहि कुंभीसु । कुंभी य गरयपाला इगंति पानंति परपसु ! तडतडतडस्स भज्जति मज्जणे फलेवु यालुकाए । चालूगा परश्या लोलती अंथर तलमिम ॥ पूय रुहिर केसट्टि याहिणी कलकलेत जलसोया।