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. . ., मनोनिग्रह (२) संसार व्युत्सर्ग--संसार से यहां संसार के कारणों का ग्रहण करना चाहिए । तात्पर्य यह कि संसार के कारणों का त्याग करके मोक्ष के कारणों का अनुठान करना संसार व्युत्सर्ग है।
चार गति को संसार कहा गया है। अंतएव चारों गतियों के कारण ही संसार के कारण हैं। महा-आरंभ अर्थात् निरन्तर षटकाय के जीवों के घात रूप परिणाम से तथा तीव्र ममता भाव रूप महा परिग्रह से नरक गति की प्राप्ति होती है । और मदिरा-मांस का लेवन और पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा भी: नरक गति का कारण है । मायाचार, विश्वासघात, असत्यभाषण और झूठा तोलना-नापना, इन चार कारणों से तिर्यञ्च गति का बंध होता है। विनय शीलता, परिणामो की भद्रता, दयालुता एवं गुणानुराग रूप चार कारणों से मनुष्य गति की प्राप्ति होती है । सराग संयम, संय. मासंयम, काम निर्जरा और बाल तप से देव गति प्राप्त होती है। चारों गति के इन सोलह कारणों का त्याग करना एवं सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान, सभ्यश्चारित्र और तप का सेवन करना संसार व्युत्सर्ग तप कहलाता है।
(३) कर्म व्युत्सर्ग-आठ कर्मों के बंध के कारणों की निर्जरा करना कर्म व्युत्सर्ग तप है। कर्म बंध के कारणों का वर्णन द्वितीय अध्ययन में किया जा चुका है।
___ श्राभ्यन्तर तप के छह भेदों का यही स्वरूप है। शास्त्रकारों ने तप की जो महत्ता प्रदर्शित की है वह आत्म शुद्धि के लिए है । क्या वाह्य तप और क्या प्राभ्यन्तर तप, सभी श्रात्म शुद्धि के उद्देश्य से ही करने चाहिए । तपों का विशेष वर्णन शास्त्रों से समझ लेना चाहिए । विस्तारभय से यहां विस्तृत वर्णन नहीं किया जा लकता। मूलः-रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव, ....
.अकालिश्र पावइ से विणास। ... रागाउरे से जह वा पयंगे,
आलोयलोले समुवेइ मच्चुं ॥ १४ ॥ छाया:-रूपेषु यो गृहि मुपैति तीव्रां, अकालिकं प्राप्नोति स विनाशम् ।
रागातुरः स यथा वा पतङ्गः, श्रालोकलोलः समुपैति मृत्युम् ।। १८ ॥ शब्दार्थः-हे इन्द्रभूति ! जो प्राणी रूप में तीन गृद्धि को प्राप्त होता है वह असमय में ही विनाश को प्राप्त होता है । जैसे प्रकाश का लोलुप पतंग मृत्यु को प्राप्त होता है।
__भाष्यः- मनोनिग्रह के साधन भूत तप का वर्णन पहले किया गया है। किन्त तप की सार्थकता तभी हैं जब इन्द्रियों को जीत लिया जाय । जिस तप से इन्द्रिय जय नहीं होता वह मानसिक निनद का कारण नहीं होता। अतएव शास्त्रकार ने यहां इन्द्रिय लोलुपता के कारण होने वाले पाप का दिग्दर्शन कराते हुए इन्द्रिय विजय का उपदेश दिया है।