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| অৱষা স্বাস্থ
भी तीला किये जाते हैं और काय से भी किये जाते हैं । किन्तु यहां मन काकरण होने से इसमें प्रवृत्त होने वाले मन को ही रोकने का विधान किया गया है।
अथका-कायकृत संरंभ और वचनकृत सरंभ आदि का मूल कारण मनोव्यापार है। सर्वप्रथम मन के लरंभ आदि होते हैं, फिर वचन और काय से। मानसिक संरंभ, लमारंभ और सारंभ के अभाव में वचन और काय से संरंभ आदि के होने की संभावना नहीं है । अतएका मानसिक संरंभ आदि का स्याम होने पर कायिक एवं वात्रनिक त्याग स्वतः सिद्ध हो जाता है।
अथवा-मन यहां डा लक्षण है। मन से वचन और काम का भी ग्रहण करना चाहिए ! अतएव संरंभ आदि में प्रवृत्त होने वाले मन को रोकने का अर्थ यह है कि बचन और काय को भी रोकना चाहिए।
मुल पाउ में यलं' क्रिया विशेषण है उसका अर्थ है-यत्नापूर्वक । मुनि को अपना मन यत्नापूर्वक रोकना चाहिए । मनोलिरोध की अनेक परिपाटिया प्रचलित हैं। उनमें से जिस प्रणाली का पहले कथन किया जा चुका है, उसी का अवलम्बन करके, अप्रमत्त भाव से मन को रोकना चाहिए।
मानसिक पाप यद्यपि बाहर दिखाई नहीं देता, फिर भी वह अत्यन्त भयंकर होता है । तराइल नामक मत्स्य मानस्तिक पाप के प्रभाव से सातवे नरक में जाता है। मानसिक पाप घोर दुर्गति का कारण है । वह बचन और काय संबंधी पापों का जनक है..। मन में जब तक पाप विद्यमान रहता है, तब तक कोई भी कायिक अनुष्ठान यथार्थ फल दाता नीं होता । अतएव सर्वप्रथम मानसिक शुद्धता की ओर ध्यान देना आवश्यक है । इसी उद्देश्य से सूत्रकार ने संरंभ आदि में प्रवृत्त होने वाले मन को रोकने का उपदेश दिया है। मल:-वत्थगंधमलंकार, इत्थी शो सयणााण य ।
अच्छंदा जे न मुंजंति, न से चाइ ति वुच्चइ ।।५।। छायाः-वस्त्रगन्धमलङ्कार, त्रियः शयनानि च ।
___ अच्छंदा ये न भुञ्जति, न ते त्यागिन इत्युच्यन्ते ॥ ५ ॥ शब्दार्थ:-जो पराधीन होकर वक्ष, गंध, अलंकार, स्त्री, और शय्या आदि का भोग नहीं करते हैं, चे त्यागी नहीं कहलाते।
भाष्यः-शास्त्रकार ने यहां मन की प्रधानता प्रतिपादन की है । मन का त्याग दी सच्चा त्याग है। जिसका मन त्यागी नहीं बना वह सच्चा त्यागी नहीं हो सकता।
संसार में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें वस्त्र, सुगंध, अलंकार, स्त्री और शय्या आदि पदार्थ प्राप्त नहीं है, किन्तु उनका मन इन पदार्थों को प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है। पहले पुण्य कर्म का उपार्जन न करने के कारण भोगोपभोग की सामग्री जिन्हें नहीं मिली है, वे मन की लालसा एर अगर विजय प्राप्त नहीं कर