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________________ - (५४८ भनानि खराव हो जाता है। निद्रा लेना एक प्रकार की मनकी एकाग्रता है, यद्यपि वह विकृत है । जो व्यक्ति चंचलता त्यागकर, थोड़ी देर के लिए भी निद्रा लेकर विकृत मानसिक एकाग्रता प्राप्त करता है वह शरीर को स्वस्थ रखता है। इस प्रकार, मन की विकार मयी एकाग्रता से भी जद शान्ति और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है, तब सय्यक प्रकार से मन को एकान बनाने से कितना लाल होगा यह सहज ही समझा जा सकता है। वस्तुतः मानसिक एकाग्रता अपूर्व आत्मानन्द की जननी है । मन की एकाग्रता आत्मा रूपी निर्भर से आनंद का स्रोत प्रवाहित होने लगता है । जिसे इस प्रानन्द की अनुभूति करनी है उन्हें मानसिक एकाग्रता साधनी चाहिए । मन की एकाग्रता का उपाय शास्त्रकार ने 'धर्मशिक्षा', बताया है । धर्मशिक्षा का अर्थ है-धर्माचार या संयम का अभ्यास । संयम के अभ्यास में ध्यान का महत्वपूर्ण स्थान है और मन की एकाग्रता के लिए ध्यान अत्यन्त उपयोगी है। सामान्य रूप से ध्यान चार प्रकार का है-(१) आर्तध्यान (२) रौद्रध्यान (३) धर्मध्यान और (५) शुक्लध्यान । इन चार भेदों में पहले के दो ध्यान अशुभ हैं और अन्त के दो शुभ है। चारों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। (१) वार्तध्यान-अनिष्ट संयोग और इष्ट वियोग श्रादि से उत्पन्न होने वाली चिन्ता आर्तध्यान है । इसके भी चार भेद हैं_ (क) अनिष्ट शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श की प्राप्ति होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना। (a) इष्ट शब्द, रूप आदि तथा स्नेही स्वजन आदि का वियोग होने पर उनके संयोग की चिन्ता करना । (ग) ज्वर, शिरोवेदना श्रादि से उत्पन्न हुई आति-वेदना से विकल होकर उससे छुटकारा पाने की चिन्ता करना। (घ) भोगोफ्भोग की प्राप्त सामग्री का वियोग न हो जाय, वह किस प्रकार मेरे अधीन बनी रहे, इत्यादि विचार करना। आगामी विषयभोगो की प्राप्ति के लिए चिन्ता करना भी इसी भेद में अन्तर्गतः आर्तध्यान प्रारंभ के छह गुण स्थानों तक हो सकता है। पांच गुणस्थान तक भार्तध्यान के चारों भेद पाये जाते हैं और छठे प्रमत्तसंयत गुणस्थान में चौथे खेद को छोड़कर शेष तीन भेद ही हो सकते हैं। मार्चध्यान वाला पुरुष प्रादन करता है, नदन करता है, शोक करता है चिन्ता करता है, नांद रहाता है और विलाप करता है। (२) रौद्रध्यान-'रुद्रः गश्यः, तस्य कर्म तब भवं वारीद्रम्' अर्थात् -- बद्र का अर्थ है रथाशय, फराशय के कर्म को अधया र भाशय से उत्पन
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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