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________________ - - - ४३० । भापा स्वरूप वर्णन मिथ्यादृष्टि कहना, श्राचारहीन कहना अथवा अन्य प्रकार से उसकी प्रतिष्ठा को कलंकित करना वाचनिक विरुद्ध व्यवहार करना कहलाता है । इसी प्रकार काय से कोई विरुद्ध चेष्टा करना कर्म से प्रत्यनीक व्यवहार करना कहलाता है। ऐसा व्यवहार न तो प्रकट में करना चाहिए और न गुप्त रूप में ही। ज्ञानी पुरुष एक प्रकार से ज्ञान गुण का प्रतिनिधि है। उसका सन्मान करने से ज्ञान का सन्मान होता है और उसका तिरस्कार करने से ज्ञान का तिरस्कार होता है। ज्ञान एवं ज्ञानी की श्रासातना से ज्ञानावरण कर्म का वंध होना शास्त्र में प्रतिपादन किया गया है। ___ यहाँ ज्ञानियों से शत्रुता न करने का निषेध किया गया है । इससे यह नहीं समझना चाहिए कि अन्य सामान्य पुरुषों के प्रति शत्रुता का भाव रखना निपिद्ध नहीं है। अज्ञानी, अनाचारी, आदि किसी भी प्राणी के प्रति शत्रुता का भाव धारण करना उचित नहीं है । शत्रुता का भाव एक प्रकार का द्वेष है और द्वेष की हेयता का सर्वत्र विधान किया गया है । फिर भी यहां ज्ञानी पुरुष की महत्ता और विशिष्टता प्रतिपादन करने के लिए ही झानी के प्रति शत्रुता न करने का कथन किया है। ज्ञान ही संसार में सर्वश्रेष्ठ प्रकाश है। उसके बिना जगत् अन्धा है। सुवर्ण, रजत, मणि, श्रादि के अभाव में संसार की तनिक भी हानि नहीं है । इनका अभाव हो जाय तो संसार के अनेक संघर्षों की समाप्ति हो सकती है । अनेक पुरुष निरा• कुलता का श्रानन्द प्राप्त कर सकते हैं। निर्धन लूटमार एवं चोरी श्रादि से बहुत अंशों में बच सकते हैं और धनवान् लोग धन के मद से बच सकते हैं। इस प्रकार अनर्थ के मूल अर्थ के प्रभाव से किसी का कुछ नहीं बिगड़ने का, प्रत्युत सभी को लाभ है। हां, ज्ञान ऐसी वस्तु नहीं है । वह आत्मा का गुण है, स्वरूप है। उसके विना संसार में अंधकार ही अंधकार है। ज्ञान ही कल्याण का एक मात्र कारण है । ज्ञान केविना मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। अतएव शानी पुरुष पूजनीय है, श्रादरणीय है। वह संसार का आभूषण है । अंधों की आंख है । उसके प्रति दुष्ट भाव रखना, उसे । शत्रु समझना, उसके विरुद्ध व्यवहार करना, ज्ञान को शत्रु समझने के समान है। श्रतएव ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए। मूलः जणवयसम्मयठवणा, नामे रुवे पडुच्च सच्चे य । ववहारभाव जोगे, दसमे अोवम्मसच्चे य॥ १५ ॥ छाया:-जनपदसम्मतस्थापना नाम रूपं प्रतीत्य सत्यं च । व्यवहारभावयोगानि दशमीपम्य सत्यं च ॥ १५ ॥ शब्दार्थ:-सत्य भापा दस प्रकार की है-(१) जनपदसत्य (२) सम्मतसत्य (३) स्था• पतासत्य (४) नामसत्य (५) रूपसत्य (६) प्रतीत्यसत्य (७) व्यवहारसत्य (5) भावसत्य (E) योगसत्य और (१०) औपम्यसत्य ।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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