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ग्यारहवां अध्याय
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उसके ज्ञाता से पूछना पृच्छनी भाषा है । किसी को निरुत्तर करने के अभिप्राय से अथवा अपना गौरव प्रदर्शित करने के विचार से प्रश्न करना पृच्छनी भाषा नहीं है, जैसे कि सोमिल ने पूछा था कि- 'श्राप एक हैं या दो हैं' जिज्ञासा की तृप्ति के लिए पूछना ही पृच्छनी भाषा है, जैसे- गौतम ने भगवान् महावीर से प्रश्न किये थे ।
[V] प्रज्ञापनी - विनीत शिष्य या मित्र आदि को कर्त्तव्य का उपदेश करना प्रज्ञापनी भाषा है । 'हिंसा गर्हित है. दुःख का कारण है, उसका श्राचरण नहीं करना चाहिए' इस प्रकार का निषेधप्रधान उपदेश भी प्रचापनी भाषा ही है ।
[६] प्रत्याख्यानी - मांगी हुई वस्तु का निषेध करना प्रत्याख्यानी भाषा है । | जैसे 'मैं यह वस्तु नहीं दूंगा।' इसके अतिरिक्त पाप के निषेध का वचन भी प्रत्याख्यानी भाषा है । जैसे- 'मैं' न स्वयं पाप करूंगा, न कराउंगा।' इत्यादि ।
[७] इच्छानुलोभा- अपने इष्ट पदार्थ का कथन करना इच्छानुलोभा भाषा है । जैसे कोई पुरुष किसी कार्य को आरंभ करता हुआ पूछे कि मैं यह काय करूं ?" उत्तर में दूसरा कहे - करो, मुझे भी यह स्पष्ट है । इस प्रकार दूसरे की इच्छा का अनुसरण करना भी इच्छानुलोभा भाषा 1
(८) अनभिग्रहांता - अनेक कार्यों का प्रश्न करने पर उसमें से एक का भी निश्चय न हो वह अनभिगृहीत भाषा है । जैसे- किसी ने, किसी से अनेक कार्य गिनाकर पूछा- कौन सा कार्य करूँ ? दूसरे ने उत्तर दिया- 'तुम्हारी जो इच्छा हो वही करो' । इस वाक्य से एक भी कार्य का निश्चय नहीं होता। ऐसी भाषा अनभिग्रहीता कहलाती है ।
(६) अभिगृहीता - उक्त अनभिगृहीता से विपरीत भाषा को अभिगृहीत भाषा कहते हैं । अर्थात् अनेक कार्यों संबंधी प्रश्न करने पर किसी एक का निश्चय करने वाली भाषा । जैसे- अभी इन सब कार्यों में से अमुक कार्य करो, इत्यादि ।
(१०) संशय करणी अनेक अर्थ वाला कोई शब्द सुनकर श्रोता जिसमें संशय में पढ़ जाय वह संशय करणी भाषा है । जैसे- 'किसी ने कहा- सैंधव ले आओ।' सैंधव शब्द के दो अर्थ हैं- -नमक और घोड़ा । भोजन का प्रसंग हो तो नमक अर्थ समझा जा सकता है और यात्रा का प्रसंग हो तो घोड़ा अर्थ समझा जा सकता है । ऐसी दशा मै यह भाषा संशय करणी नहीं है । किन्तु जहाँ प्रकरण या अन्य अर्थ बोध सहायक सामग्री न हो, वहाँ श्रोता को संदेह उत्पन्न होता है । इस अवस्था में यह भाषा संशय करती है । इसी प्रकार संशय की करणी कहलाती हैं, चाहे वह अनेकार्थक शब्द के जैसे- 'कौन जानता है, परलोक है या नहीं ?'
कारण भूत कोई भी भाषा संशय प्रयोग से हो या अन्य प्रकार से ।
(११) व्याकृता--जो भाषा प्रकट अर्थ वाली हो यह व्याकृता कहलाती है । जैसे-- 'यह देवदत्त का भाई हूँ ।'
(१२) अव्याकृता - अत्यन्त गूढ़ अर्थ चाली अथवा अस्पष्ट उच्चारण वाली