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छठा अध्याय
[ २३६ ] श्रादि का विस्तार पूर्वक अभ्यास करने से जो रुचि होती है वह विस्तार रुचि है।
(E) क्रिया रुचि-विशिष्ट क्रिया करने से जिस सम्यक्त्व की प्राप्ति हो उसे क्रियारुचि सम्यक्त्व कहते हैं।
१६) संक्षेप रुचि-थोड़े से ज्ञान की प्राप्ति होते ही जिसे सम्यक्त्व प्राप्त हो जाता है वह संक्षेप रुचि है।
(१०) धर्मरुचि--श्रुतधर्म, चारित्र धर्म आदि का निरूपण सुनने से होने वाला सम्यक्त्व धर्मरुचि सम्यक्त्व है।
शास्त्रों में सम्यक्त्व के अनेक प्रकार से भेद किये गये हैं। जैसे-चार प्रकार से दो-दो भेद हैं -
(१) द्रव्य सम्यक्त्व (२) भाव सम्यक्त्व, (१) निश्चय सम्यक्त्व (२) व्यवहार सम्यक्त्व. (१) निसर्गज सम्यक्त्व :२) अधिगमज सम्यक्त्व, (१) पौद्गलिक सम्यक्त्व (२) अपौद्गलिक सम्यक्त्व ।
- यहां विशुद्ध बनाये हुए मिथ्यात्व के पुद्गलों को द्रव्य सम्यक्त्व समझना चाहिए और उन पुद्गलों के निमित्त से होनेवाली तत्व-श्रद्धा को भाव सम्यक्त्व समझना चाहिए । क्षायोपशामिक सम्यक्त्व पौद्गलिक और क्षायिक तथा औपशमिक सस्यत्व अपोद्गलिक सम्यक्त्व कहलाता है। शेप भेदों का कथन पहले श्राचुका है।
सम्यक्त्व के अपेक्षाभेद से तीन-तीन भेद भी होते हैं। जैसे-(१) औपशमिक सम्यक्त्व (२) क्षायोपशामिक सम्यक्त्व (३) क्षायिक सम्यक्त्व । तथा--(१) कारक सम्यक्त्व २) रोचक सम्यक्त्व और (३) दीपक सम्यक्त्व ।
औपशामिक श्रादि तीन भेदों का कथन पूर्वोक्त प्रकार से समझना चाहिए । जिस सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर जीव सम्यक् चारित्र में श्रद्धा करता है, स्वयं चारित्र का पालन करता है तथा दूसरों से कराता है.वह कारक सम्यक्त्व है जिस सम्यक्त्व के प्राप्त होने पर प्राणी संयम-पालन में विशिष्ट रुचि रखता है, पर चारिजमोह के उदय से अभिभूत होने के कारण संयम का श्राचरण नहीं कर पाता बद रोचक सम्यक्त्व कहलाता है। जिस जीव की रुचि सम्यक् तो न हो परन्तु अपने उपदेश से दूसरों में सम्यक् रुचि उत्पन्न करे उसे दीपक सम्यक्त्व कहा गया है। सम्यग्दर्शन का कारण होने से इसे उपचार से लम्यक्त्व माना गया है।
किसी अपेक्षा से सम्यक्त्व के पांच भेद भी कहे गये है। जैसे-(१) उपराम सम्यक्त्व (२) सास्वादन सम्यक्त्व (३) क्षायोपशामिक सम्यक्त्व (४) वेदक सम्यक्त्य और (५) क्षायिक सम्यक्त्व । ___ उपशम सम्यक्त्व की स्थिति अन्तर्मुहर्त है। अन्तमुहर्त के पश्चात् यह सम्यक्त्व नष्ट हो जाता है। जीव जब उपशम सम्यत्व से गिरकर मिथ्यात्व की और उन्मुख होना दै-पूर्ण रूप से मिथ्यादृष्टि नहीं बन पाता, उस समय की उसकी श्रद्धा कप परिणति को सास्वादन या सासादन सम्यक्त्व कहते हैं। यह सम्यक्त्य जवन्य एक समय तक