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तृतीय अध्याय .. (५। प्रज्ञा-अवस्था-चालीस से पचास वर्ष पर्यन्त प्रज्ञा-अवस्था रहती है। इस अवस्था में अभीष्ट अर्थ का उपार्जन करने के लिए तथा कुटुम्ब की वृद्धि के लिए मनुष्य अपनी बुद्धि का खूब उपयोग करता है।
(६ हायनी-अवस्था-पचास से साठ वर्ष तक यह अवस्था रहती है । इस अवस्था के प्राप्त होने पर मनुष्य इन्द्रियों संबंधी भोग भोगने में हीनता का. अनुभव. करने लगता है । इस कारण इले हायनी अवस्था कहते हैं।
(७) प्रपंच-अयस्था-साठ से सत्तर.वर्ष तक प्रपंच अवस्था रहती है । इस अवस्था में कफ निकलने लगता है, खांसी आने लगती है और शरीर संबंधी संकटें. बढ़ जाती हैं, अतएव इसे प्रपंच अवस्था कहते हैं ।
- (८) प्रारभार-अवस्था- सत्तर वर्ष से अस्सी वर्ष तक की हालत प्रारभारअवस्था कहलाती है। इसमें शरीर में झुर्रियां पड़ जाती हैं और शरीर झुक जाता हैं, अतः इसे प्रारभार अवस्था कहा है।
(6) मुम्मुखा-अवस्था-अस्सी से नव्वे वर्ष की अवस्था मुम्मुखी कहलाती है । इस अवस्था में मनुष्य जरा रूपी राक्षसी के पंजे में पूर्ण रूप से फंस जाता है । अर्धमृतक के समान यह अत्यन्त शिथिल अवस्था है।
(१५) शायनी-अवस्था-नव्वे वर्ष से लेकर सौ वर्ष की अवस्था शायनी अवस्था है । इस अवस्था में मनुष्य का शरीर, इन्द्रियां और मन अपना-अपना व्यापार प्रायः बन्द कर देते हैं. अतएव सुस्त मनुष्य कीसी दशा हो जाती है। श्रन्त में मनुष्य महा-निगा में शयन करता है- उसका जीवन समाप्त हो जाता है, अतएव इसे शायनी अवस्था कहा गया है । इस प्रकार सानव-जीवन दस अवस्थाओं में बंटा हुआ है।
मनुष्य की इन अवस्थाओं पर विचार करने से प्रतीत होगा कि अत्यन्त . कठिनता से प्राप्त हुआ मनुष्य भव अनेक अवस्थाओं में बँटा है और इन अवस्थाओं में धर्म-क्रिया करने का बहुत कम अवकाश है । मनुष्य जय बालक होता है तब उसे धर्म-अधर्म का बाध ही नहीं होता, इसलिए वह धर्म क्रिया से विमुख रहता है। युवावस्था में विषयों की और भुक जाने के कारण, धर्माचरण का सामर्थ्य होने पर भी.मनुष्य धर्म की विशिष्ट आराधना नहीं करता और वृद्धावस्था में फिर सामर्थ्य नष्ट हो जाती है । इल प्रकार मनुष्य तीनों अवस्था वृथा गँवा देता है । और अनन्त पुण्य के व्यय से प्राप्त हुआ मानव-भव रूपी अनमोल हीरा निष्प्रयोजन बीत जाता है । इसलिए कविवर सूधरदास ने ठीक ही कहा हैजौलों देह तेरी काहू रोग सौंन घेरी, जौलो जरा नाहिं तेरी जासों पराधीन परी है। जौलो जम नामा वैरी देय न दमामा जोलो, माने कान रामा बुद्धि जाइन चिगरी है। तौलो मित्र मेरे ! निज कारजः सवार ले रे, पौरुप थकेंगे फेर पीछे कहा करी है। अहो आग लाये जब झोपड़ी जरन लागी, कुत्रा के खुदायों तब कौन काम सरि है ?...