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________________ प्रथम अध्याय - (२) आप कहते हैं-शव्द नित्य है, क्योंकि वह श्रोत्र-इंद्रिय द्वारा ग्रहण किया जाता है, लो भी ठीक नहीं है क्योंकि अनगिनती वाक्य ऐसे हैं जो श्रोत्र-इंद्रिय द्वारा ग्रहण किये जाते हैं किन्तु जिन्हें आप स्वयं नित्य नहीं मानते हैं। जैसे स्वर्ग कामः सुगं पिवेत् । । अर्थात स्वर्ग जाने की इच्छा रखने वाले पुरुप को मदिरा-पान करना चाहिए। यह वाक्य श्रांत्रन्द्रिय द्वारा ग्रहण किया जाता है, इसलिए आपके कथनानुसार "यह भी नित्य होना चाहिए । मग आप इसे नित्य नहीं मान सकते । अगर इस वाक्य को भी नित्य मानते हो तो वेद की तरह इसे प्रमाण भूत मान कर इस बास्य के अनुसार ही आप को आचरण करना चाहिए। . (३) तीसरी युक्ति आपने यह बताई है कि शब्द को यदि नित्य नहीं माना जायगा तो अपना अभिप्राय समझाने के लिए उसे बोलना व्यर्थ हो जायगा । यह कथन भी सत्य नहीं हैं । इस कथन के अनुसार तो प्रत्येक वाच्य पदार्थ को भी सर्वथा नित्य मानना पड़ेगा; क्योंकि शब्द का अर्थ समझने के लिए जैसे शब्द की नित्यता आवश्यक समझते हो उसी प्रकार पदार्थ की नित्यता भी आवश्यक ठहरती है। पदार्थ यदि अनित्य है तो वः प्रतिक्षण नवीन-अपूर्व उत्पन्न होगा और ऐसी अवस्था में उसका वाचक शब्द नो को होगा ही नहीं; तब उस पदार्थ को जताने के लिए किसी भी शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। मगर शब्द का प्रयोग किया जाता है इसलिए यह भी मानना चाहिए कि शब्द का वाच्य पदार्थ सदैव एक-सा विद्यमान रहता है। ऐसा मान लेने पर संसार के समस्त पदार्थ नित्य ठहरेंगे, जो आपको भी अमिष्ट नहीं है। अतएव यह युक्ति आपके सिद्धान्त के विरुद्ध पड़ती है। इसलिए शब्द को कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य ही स्वीकार करना चाहिए। पुद्गल द्रव्य की पर्याय होने से शब्द अनित्य है और पर्याय द्रव्य से सर्वथा भिन्न नहीं होती इसलिए पुद्गल द्रव्य रूप होने स कथंचित् नित्य है। सूत्रकार ने शब्द के अनन्तर अंधकार को पुद्गल का लक्षण बतलाकर उन लोगों के मत का निराकरण किया है जो अंधकार को पुदगल की पर्याय नहीं स्वीकार करते । नैयायिक मत के अनुयायी कहते हैं कि अंधकार कोई वस्तु नहीं है, वह तो केवल प्रकाश का अभाव है । जब सूर्य-चन्द्रमा श्रादि प्रकाश करने वाले पदार्थों के प्रकाश का सर्वथा अभाव होता है तो अंधकार मालूम होता हैं । यह अभाव रूप है अतएव इसे पुद्गल रूप बतलाना ठीक नहीं है। - हम दोवाल क भीतर नहीं प्रवेश कर पाते क्योंकि दीवाल पुद्गल होने के कारण हमारा गात को रोकता है. इसी प्रकार यदि अंधकार पुद्गल होता तो उसमें भी हम प्रवेश.नं कर पाते । वह भी दीवाल की तरह हमारी गति को रोक देता। पर ऐसा देखा नहीं जाता। हम लोग अंधकार में गमन करते हैं, वह हमें रोकता नहीं है । इसांलए यह सिद्ध होता है कि अंधकार पुद्गल नहीं है।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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