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पट् द्रव्य निरूपण क्षार किया जाय । किन्तु जिनागम में शब्द को कथंचित् अनित्य माना गया है । अतएव यहां उन बाधाओं के लिए तनिक भी गुंजाइश नहीं है। फिर भी उन पर संक्षेप में विचार किया जाता है
(१) प्रत्याभज्ञान प्रमाण से शब्द की एकान्त नित्य ना मानना ठीक नहीं हैं। प्रत्यभिज्ञान उसी वस्तु को जानता है जो वस्तु कथंचित् अनित्य होती है। क्योंकि प्रत्यभिज्ञान में 'यह वही है' इस प्रकार दो अवस्थाओं में एक रूप से रहने वाले पदार्थ को जाना जाता है। एकान्त नित्य पदार्थ सदा एक ही अवस्था में रहता है: उस में दो अवस्थाएँ हो ही नहीं सकती। अतएव जो पदार्थ एकान्त नित्य माना जायगा उसमें दो अवस्थाएँ न होने से वह प्रत्यभिज्ञान का विषय नहीं हो सकता। शब्द प्रत्यभिज्ञान का विषय होता है इससे उसकी अनित्यता-कथंचित् परिणामीपनही सिद्ध होता है। : इसके अतिरिक्त जब कोई 'गो' शब्द बोलता है तो हमें प्रत्यक्ष से यह मालूम होता है कि 'गो, शब्द उत्पन्न हुश्रा है, और वोलने के पश्चात् उसका विनाश भी मालूम होता है। अतएव शब्द की सर्वथा नित्यता को विपय करने वाला प्रत्यभिज्ञान । प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित होने के कारण मिथ्या है। : शंका- जब कोई व्यक्ति शब्द का प्रयोग करता है तो शब्द व्यक्त (प्रकट ) होता है, उत्पन्न नहीं होता और बोलने के पश्चात् अव्यक्त (अप्रकट ) हो जाता है, नष्ट नहीं होता। इसलिए प्रत्यक्ष से शब्द का उत्पन्न होना और नष्ट होना जो ज्ञात होता है वह मिथ्या है। . . . समाधान-ऐसा मानने से सभी पदार्थ नित्य हो जाएँगे। घट, पट श्रादि सभी पदाथों के विपय में यह कहा जा सकता कि घट-पट आदि कोई भी पदार्थ कभी उत्पन्न नहीं होता, सिर्फ व्यक्त हो जाता है। और घट आदि का कभी नाश भी नहीं होता, लिफ अव्यक्त हो जाता है। इस प्रकार व्यक्त और अन्यझ होने के कारण ही पदार्थों का उत्पाद और विनाश प्रतीत होता है। फिर मीमांलक शब्द की ताह । सभी पदार्थों को सर्वथा नित्य क्यों नहीं मान लेता ? अकेले शब्द को ही क्यों नित्य मानता है ?
वास्तव में शब्द तालु-कंठ श्रादि से उत्पन्न होता है, जैसे कि मिट्टी श्रादि से घट उत्पन्न होता है । अतएव शब्द को एकान्त नित्य मानना युक्ति ले सर्वथा प्रतिकूल'
- इसके सिवाय शब्द को नित्य सिद्ध करने के लिए श्राप जो प्रत्यभिज्ञान प्रमाण उपस्थित करते हैं वह अनुमान प्रमाण से बाधित है। यथा- शब्द अनित्य है, क्योंकि उम्म तीव्रता श्रार मन्दता आदि धर्म पाये जाते हैं। जिसमें तीव्रता और मन्दता श्रादि धर्म होने हैं वह अनित्य होना है, जैसे सुन-दुःख शादि । शब्द में भी तीव्रता.. मन्दता श्रादि हैं अतएव वह अनित्य है। इस अनुमान प्रमाण से शब्द की नित्यता सिद्ध करने वाला प्रत्याभिशान वंडित हो जाता है।