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चतुर्थ परिजेद. (१२५) कारण कहिये बियें, मिथ्योपदेशाः, मिथ्या (वितथ) आतना उपदेश विनानो धर्मनो उपदेश दे जेनो ते अगुरु बे. अहिंयां कोई एवी शंका करे के धर्मना उपदेशदाता गुरु बे, बतां पण निःपरिग्रहादि गुणोनुं ते उपदेशदातामां शामाटे अस्तित्व होवू जोश्यें ? ते शंका दूर करवाना हेतुथी विशेष लखिये बियें.
॥श्लोक ॥ परिग्रहारंजमन्ना, स्तारयेयुः कथं परान् ॥ स्वयं दरिलो नपर, मीश्वरीकर्तुमीश्वरः॥२॥ अर्थः-परिग्रह- स्त्री प्रमुख अने श्रारंज- जीवहिंसा अर्थात् सर्वानिलाषी तथा सर्वजोजी आ बने विषयोमां जे मन , अर्थात् आ बंने विषयरूप जवसमुखमा जे डुबेला बे, ते बीजा जीवोने केवीरीतें संसार सागरमांथी तारी शके तेम डे ? दृष्टांत के जे पुरुष पोतेज दरिज डे ते बीजाने धनवान् केवी रीतें करी शके तेम ? हवे प्रथम श्लोकना चोथा पदमा " मिथ्योपदेशागुरवोमताः" जे ले ते पदनो अर्थ विस्तारथी लखिये लियें. कुगुरुनो उपदेश श्रा प्रमाणे मिथ्या .. आ मिथ्या उपदेशना स्वरूपमा प्रथम त्रणसे त्रेसठ मतनुं स्वरूप लखियें लियें. एकसो एंशी मत क्रियावादिना . तथा चोराशी मत अक्रियावादिना , तथा सडसठ मत अज्ञानवादिना , अने बत्रीश मत विनयवादिना , ए रीतें त्रणसे त्रेसठ मत थाय .
प्रथम क्रियावादिना मतनुं खरूप कहियें लियें. क्रियावादी कदेने के कर्त्ताविना पुण्यबंधादिलक्षणरूप क्रिया थती नथी तेथी क्रिया, श्रास्मानीसाथे समवायसंबंधवाली . ए प्रमाणे तेमनो मत २. क्रियावादी थात्मा प्रमुख नव पदार्थोंने एकांत अस्ति स्वरूपपणे माने , आ क्रिया वादिना एकसो एंशीमत, नीचेमुजब जाणी लेवा. १ जीव,श्यजीव,३श्राश्रव, ४ बंध, ५ संवर,'६ निर्जरा ७ पुण्य, अपुण्य, ए मोदा, आ नव पदार्थ अनुक्रमें पत्रादिपर लखवा; पनी जीव पदार्थना नीचे खतः तेमज परतःथाबे नेद स्थापन करवा. या खतः परतः नीचे वाली जुदा जुदा नित्य तेमज अनित्य एवा बे नेद स्थापन करवा; पळी नित्य, अनित्य था बंनेनी नीचे जुदा जुदा काल, ईश्वर, ३ श्रात्मा, ४ नियति ५ खजाव, श्रा पांच स्थापन करवा,त्यारबाद विकल्प करीलेवा, ते नीचे मुजब-यंत्रस्थापना.