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वितीय परिजेद.
(६५) जशे, कारण के घटादि कार्योना कर्त्ता कुंजारादि शरीरवालाज देखिये बियें, अने ईश्वरने ज्यारे शरीररहित मानिये त्यारे तो ईश्वर कांश पण कार्य करवाने समर्थ नहि थाय; जे आकाशनी जेम नित्य व्यापक अक्रिय बे ते अकर्ता बे. श्रा हेतुश्री शरीरसहित के शरीररहित ईश्वरनी साथे कार्यत्वहेतुनी व्याप्ति सिक थती नथी, तथा आपनो हेतु कालात्ययापदिष्ट पण डे, आपना साध्यना धर्मिनो एक देश वृदा, वीजली, वादलां, ईअधनुष्यादिना आज पण कोइ बुद्धिमान् कर्ता देखाता नथी, ते कारणश्री प्रत्यक्षथी बाधित थया पनी तमे पोतानो हेतु कह्यो. तेथी तमारो देतु कालात्ययापदिष्ट सिद्ध थयो. श्रा तमारा कार्यत्वहेतुथी बुद्धिमान् ईश्वर जगत्कर्ता कदी सिझ यता नथी.
हवे बीजी रीते जगत्कर्ता खमन करवानुं स्वरूप लखियें जियें जे कोश ईश्वरवादी एम कहे के जगत् सर्व ईश्वरनु रचेवू ! ते तेनु केहे समीचीन नथी, कारण के जगत्कर्ता ईश्वर को प्रमाणथी सिझ यता नथी.
पूर्वपदः-ईश्वरने जगत् कर्त्ता सिझ करनार अनुमान प्रमाण जे. जुर्ज. जे यथोचित रीते अनिमत फलने संपादन करवाने प्रवृत्त होय, तेनो अधिष्ठाता को बुद्धिमान् अवश्य होवो जोश्य, जेम वांसला, आरि प्रमुख शस्त्र, काष्ठना बे कटका करवामां प्रवर्ते डे, तेमज यथोचित रीतें सर्वजगत्ने सुख दुःखादि जे फल आपे ले तेनो अधिष्ठाता को बुद्धिमान् जरूर होवो जोश्य, थापें एम न केहेबु के वांसला, आरि प्रमुख पोतेज काष्ठना बे कटका करवामां प्रवर्ने बे, कारण के ते तो अचेतन डे तेथी पोतानी मेले केम प्रवर्ती शके ? जो एम कहो के वासला, आरि प्रमुख खजावधी प्रवर्ने दे तो तो तेउनी निरंतर प्रवृत्ति होवी जोश्ये, वचमां कदी स्तब्ध थवां न जोश्यें, पण एम नहि पूर्वोक्त हेतुथी यथोचित रीतें पोत पोतानां फलने साधनारा जे जीव बे, तेउनो अधिष्ठाता ईश्वरज सिद्ध थाय . तथा बीजुं अनुमान. जे परिमंमलादि, वृत्त, त्र्यंश, चतुरंश, संस्थानवाला गाम, नगरादि बे, ते सर्वज्ञानवाननां करेला जे. जेम घटादि पदार्थ, तेमज पूर्वोक्त संस्थान संयुक्त पृथ्वी, पर्वत प्रमुख . श्रा अनुमानथी पण जगत्कर्ता ईश्वर सिक थाय . उत्तर पदः-जगत्कर्ता सिद्ध करनारुं श्राप, श्रा अनुमान अयुक्त ,