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जैनतत्त्वादर्श. ते तो नथी. ते हेतुश्री ईश्वर नित्यज . पूर्वोक्त विशेषणयुक्त ईश्वर (जगवान् ) जगत्कर्त्ता . इति पूर्वपदा ।
उत्तरपदः-हे वादि ! थाप जे एम कहो बो के पृथ्वी, पर्वत वृदादि बुद्धिमान् कर्त्तानां रचेलां बे, ते अयुक्त डे, कारण के आ आपना अनुमानमां व्याप्तिनुं ग्रहण यश् शकतुं नथी, अने हेतु जे होय जे ते सर्वत्र व्याप्तिमां प्रमाणथी सिम थया थकाज पोताना साध्यने सिक करी शके डे. आ कथनमां सर्ववादियो एकमत ने.
हवे प्रथम आप कहो के जो ईश्वर जगत् रचे ले तो पूर्वे कह्या मुजब ते ईश्वर, शरीरवाला के शरीर विनाना ने ? जो एम कहो के ईश्वर शरीरवाला ने तो अमारा सरखा दृश्य शरीरवाला ले के पिशाचादिनी पेठे अदृश्य शरीर वाला ? प्रथम पद तो प्रत्यक्ष बाधित के कारण के तेई. श्वरना विनाज वर्तमानमां पण उत्पन्न थनारां तृण, वृक्ष,धनुष्, वादला प्रमुख कार्यों देखिये बिये. "अनित्य शब्दप्रमेयत्वात्" जेम था प्रमेयत्व हेतु साधारण अनेकांतिक बे तेमज था कार्यत्वहेतु साधारण अनेकांतिक .
बीजो पद मानशो तो शुं ईश्वरतुं शरीर नथी देखी शकातुं ते ईश्व• रनामाहात्म्यथी नथी देखी शकातुं के अमारा माग अदृष्टना प्रनावथी ? अर्थात् अमारा माग कर्मना प्रजावथी नथी देखी शकातुं ? जो एम केहेशो के ईश्वरना माहात्म्यथी ईश्वरनुं शरीर देखातुं नथी तो था पदमां को पण प्रमाण नथी के जेथी ईश्वरनुं माहात्म्य सिद्ध थाय, परंतु वादी जो तपावेलु जसत पीवानी हिंमत करे तो कदाचित् मानी लश्यें. आ तमारा कथनमां इतरेतर आश्रय दूषण आवे . जो ईश्वर माहात्म्य विशेष सिद्ध थाय तो अदृश्य शरीरवाला सिह थाय, जो अदृश्य शरीरवाला सिद्ध थाय तो माहात्म्य विशेष सिझ थाय. बीजो पद-जो पिशाचादिनी पेठे ईश्वरचं अदृश्य शरीर मानशो तो तो संशयनी निवृत्ति थशे नहि. जेम के-झुं ईश्वर नथी के-जेथी तेनुं शरीर नजरे पडतुं नथी? त्यारे तो वांफणीना पुत्रना शरीरनी जेम, अथवा तो अमारा पूर्वना पापोना प्रजावणी ईश्वरनुं शरीर देखातुं नथी. श्रा संशय कदी दूर नहि थाय. जो एम कहो के अमारा ईश्वर, शरीररहित ने तो तो दृष्टांत तेमज दार्टीतिक ए बने विषम थइ जशे अने हेतुविरुद्ध थ