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जैनतत्त्वादर्श. पूर्वपदः-ज्यारे आत्माने व्यामोह जे त्यारे तो अद्वैततत्त्वनो उपदेश कस्यो जाय ?
उत्तरपक्ष:- ज्यारे आत्मानो व्यामोह दूर थशे त्यारे तो आत्मा श्रवश्य अवस्थांतरने प्राप्त थशे, ज्यारे अवस्था बदलाशे, त्यारे अवश्य हैतापत्ति थ जशे. वली ज्यारे अद्वैत तत्त्वनो उपदेशक परने उपदेश करशे त्यारे अवश्य परने मानवो पडशे. पड़ी अद्वैततत्त्व परने निवेदन करवू अने अद्वैततत्व मानवु ा कथन तो मारो पिता कुंवारो (बाल) ब्रह्मचारी ने तेना जेवं थयु. आ वचन केदेवाश्री उन्मत्ताश्नो दोष आवशे. पोताने अने परने बनेने जो मानशे तो द्वैतापत्ति अवश्य थशे. श्रा कारणथी अद्वैतमत युक्तिविकल ने.
पूर्वपदः- परमब्रह्मरूप सिहज सकल नेदज्ञान प्रत्ययोना निरालंबनपणांनी सिकि.
उत्तरपदः-श्रा कथन पण तमारूं ठीक नथी. कारण के परम ब्रह्मनीज सिकि नथी. जो जे तो स्वतः सिद्धि के परतः सिकि ? स्वतः सिकि तो नथी, जो होय तो तो कोश्नो पण विवाद रहे नहि. जो परतः सिधि ले तो झुं अनुमानथी ले के आगमथी ? जो कहो के अनुमानथी ले तो ते अनुमान के ?
पूर्वपदः-ते अनुमान था . विवादरूप जे अर्थ ले ते प्रतिज्ञासांत प्रविष्ट ब्रह्मजासनी अंतर , प्रतिनासमान' होवाथी, जे जे प्रतिजासमान ले ते ते प्रतिनासांत प्रविष्टज देखायडे, जेम प्रतिनास आत्मा प्रतिनासमान बे, सकल अर्थ सचेतन अचेतन विवादरूप ले ते कारणथी प्रतिजासांत प्रविष्ट. घटपटादि श्रा अनुमान बे.
उत्तरपदाः-श्रा अनुमान तमारूं सम्यक् नथी (१) धर्मी (२) हेतु (३) दृष्टांत आ त्रणे प्रतिज्ञासांत प्रविष्ट होवाथी साध्यरूपज थया.
पूर्वपदः-त्यारे तो (१) धर्मी (२) हेतु (३) दृष्टांत, श्रा त्रणेना नहि होवापणाथी अनुमानज नहि बनी शके. जो एम कहो के (१) धर्मी (२) हेतु (३) दृष्टांत आ त्रणे प्रतिजासांत प्रविष्ट नथी, तो तेउनीज साथे हेतु, व्यभिचारी थशे, जो एम कहो के अनादि विद्या वासनाना बलथी हेतु दृष्टांत जे ते प्रतिजासना बाहिरनी पेठे निश्चय