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(५०) जैनतत्त्वादर्श. पूर्वपद-अमें तो जे प्रतीत न थाय तेने अनिर्वाच्य कहियें जियें.
उत्तरपद-श्रा तमारा केहेवामां तो बहुज विरोध श्रावे . जो कदी प्रपंच प्रतीत थतो नथी तो था पोताना प्रथम अनुमानमां प्रपंचने प्रतीयमान हेतुस्वरूपपणे शा माटे ग्रहण करयो ? श्रने प्रपंचने अनुमान करती वेला धर्मिपणे शा माटे ग्रहण करयो ? जो एम कहेशो के प्रपंचने धर्मीपणे अथवा प्रतीयमान हेतुपणे ग्रहण करवामां शुं दोष बे? तो पड़ी आ उपर जे प्रतिज्ञा करी हती के अमे तो जे प्रतीत न होय तेने अनिर्वाच्य कहियें लियें, तो हवे प्रपंच अनिर्वाच्य केवी रीतें सिक थयो ? ज्यारे प्रपंच अनिर्वाच्य नहि त्यारे तो नावरूप अथवा तो अजावरूप सिक थशे. या बंने पक्षमा कोश्पण रूपें प्रपंच मानवाथी पूवर्वोक्त विपरीताख्याति तथा सत्रख्याति रूप बंने दूषण वली थापना ग. लामा रसी नाखे . हवे जागी क्यां जशो ? वली अमे आपने पुबियें लिये के श्रा प्रपंचने तमे जे अनिर्वाच्य मानोडो ते प्रत्यक्ष प्रमाणथी मानोबो ? के अनुमान प्रमाणथी ? प्रत्यद प्रमाण तो आ प्रपंचने सत् स्वरूपज सिक करे. जेवा जेवा पदार्थ डे, तेवं तेज प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न थाय जे. वली प्रपंचस्वरूप एवं डे के, परस्पर जुदी जुदी जे वस्तु ते पोत पोताना स्वरूपमा नावरूप ,अने बीजा पदार्थना स्वरूपनी अपेदायें अनावरूप . आ इतरेतर विविक्त वस्तुउनेज प्रपंच रूप मानेल , तो पड़ी प्रत्यद प्रमाण, प्रपंचने अनिर्वाच्य केवी रीतें सिद्ध करी शके ?
पूर्वपद-उपर बतावेल अमारो जे पद ले तेने प्रत्यक्ष कांश पण हानि करी शकतुं नथी, कारण के प्रत्यद तो विधायकज . जो कदी प्रत्यद एक वस्तुमां बीजी वस्तुना स्वरूपनो निषेध करे तो अमारा प. दने बाध करनार ठरे, परंतु प्रत्यक्ष प्रमाण तो एवं नथी. प्रत्यद प्रमाण तो अन्य वस्तुमां अन्य वस्तुनु स्वरूप निषेध करवाने बुलु (कुंठ) .
उत्तर पद-श्रा पण श्रापर्नु कहेवू असत्य बे. अन्य वस्तुना स्वरूपनो निषेध कस्या विना प्रस्तुत वस्तुना यथार्थ स्वरूपनो कदापि बोध नहि थाय. पीयूँ इत्यादि वर्णोना अनावनो ज्यारे बोध थशे, त्यारेज कालु एवा रूपनो बोध थशे. तेमज ज्यारे प्रत्यक्ष प्रमाणथी यथार्थ व