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द्वितीय परिच्छेद.
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उत्तरपक्ष - प्रथम तो याप ते कहो के अनिर्वाच्य शुं वस्तु बे ? अर्थात् निर्वाच्यक वस्तुने कहो हो ? (१) शुं वस्तुने के देवावालो शब्द नथी ? (२) श्रथवा शब्दनुं निमित्त नथी ? प्रथमनो विकल्प तो कल्पनाज करवा योग्य नथी. या सरल बे, या रसाल बे, एवा शब्द तो प्रत्यक्ष सिद्ध बे. बीजो विकल्प लहियें, तो शुं शब्दनुं निमित्त ज्ञान नथी ? के पदार्थ नयी ? प्रथम पक्ष तो समीचीन नथी. सरल, रसाल, ताल, तमाल, प्रमुखनुं ज्ञान तो प्राणी प्राणी प्रत्ये प्रतीत बे. सर्व बुद्धिवंत जीव जाणे बे के सरल, रसाल, ताल, तमाल प्रमुखनुं ज्ञान अमने बे. बीजो पक्ष - पदार्थ नावरूप नश्री ? के अनावरूप नथी ? जो एम कहो के पदार्थ जावरूप नथी अने प्रतीत थाय बे, तो आपने विपरीत ख्याति मानवी पडी, छाने अद्वैतवादियोना मतमां विपरीत श्राख्याति मानवी ते महादूषण बे. बीजो पक्षजो पदार्थ श्रावरूप नथी तो जावरूप सिद्ध थया, त्यारे तो सत्ख्याति मानवी पडी; अने ज्यारे अद्वैतमतनो अंगीकार कस्यो ने सत्ख्याति मानवी पडी त्यारे सतख्यातिना मानवाची अद्वैतमतना मूलने कुहाडाश्री कापी नाख्युं. एवी रीतें कदापि अद्वैतमत सिद्ध यशे नहि.
पूर्वपक्ष - जावरूप तथा अभावरूप ए बने प्रकारें वस्तु नथी. उत्तरपक्ष- में आपने पुढियें बियें के नाव तेमज नाव या बनेना
जे लोकमां प्रसिद्ध वे तेज श्रापें मान्या बे ? के तेनाथी विपरीत अन्य तरेहना अर्थ पें मान्या बे ? जो कदी प्रथम पक्ष मानशो तो ज्यां जावनो निषेध करशो त्यां अवश्य जावने मानवो पडशे अने ज्यां saiवनो निषेध करशो त्यां अवश्य जावने कबुल करवो पडशे; कारण के वने परस्पर विरोधी बे. तेथी एकनो निषेध बीजानो विधि अवश्य कबुल करावशे. ए रीतें अनिर्वाच्यता तो जड मूलथी नाश पामी. हवे बीजो पक्ष लेशो तो तेथी अमने कांइ हानि नथी, कारण के लौकिक अर्थात् थापना मनःकल्पित शब्द तेमज शब्दनुं निमित्त जो नाश पामशे तो तेथी लौकिक शब्द तथा लौकिक शब्दनुं निमित्त कदापि नाश पामशे न हि तो पछी अनिर्वाच्य प्रपंच केवी रीतें सिद्ध थशे ? जो अनिर्वाच्य सिद्धन थयो तो प्रपंच मिथ्या केम सिद्ध थायज ? तो पढी एक अद्वैत ब्रह्मपण केम सिद्ध थाय ?
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