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________________ (५३७) जैनतत्त्वादर्श. म गृहवासमां तो पांचमा चक्रवर्ती थया, पनी दीक्षा लश् केवली थइ तीर्थंकर थया. त्यारपबी हस्तिनापुर नगरमां कुरुवंशी सूर नामना राजा थया, तेनी श्रीराणीना पुत्र श्रीकुंथुनाथ थया. प्रथम गृहस्थावासमां बग चक्रवर्ती थया, पड़ी दीक्षा लश् सत्तरमा तीर्थंकर थया. त्यार पड़ी श्रीहस्तिपुर नगरमां कुरुवंशी सुदर्शन नामना राजा थया, तेनी देवी राणीना पुत्र श्री अरनाथ थया. ते गृहस्थावासमा सातमा चक्रवर्ती थया, श्रने दीदा सीधा पही अढारमा तीर्थंकर थया. अढारमा अने जंगणीशमा तीर्थकरना अंतरमा श्रापमा, कुरुवंशी सुजूम नामना चक्रवर्ती थया. आ सुजूमना वखतमांज परशुराम थया. ते बनेनो संबंध जैनमतना शास्त्रोने अनुसारे लखीये बीये. योगशास्त्रमा लख्यु डे के वसंतपुर नामना नगरमा उबन्नवंशी अर्थात् जेनो कोश संबंधी नही, एवो अग्निक नामनो एक बोकरो हतो. एकदा श्रमिक को सथवारा साथे देशांतर जतां मार्गमा साथथी नूलो पडतां जंगलमा एक तापसना आश्रममा गयो. कुलपति तापसे तेने पोतानो पुत्र करी राख्यो. अनुक्रमे श्रग्निक अत्यंत घोर तप करी मोटो तेजखी थयो. जगत्मा यमदग्नि तापसना नामथी प्रसिद्ध थयो. ते अवसरे एक जैनमति विश्वानर नामनो देव तथा एक तापसोनो जक्त ध्वनंतरि नामनो देव, वंने जणा परस्पर विवाद करवा लाग्या. विश्वानरे कयुं के अरिहंतनो कथन करेलो धर्म प्रमाणिक बे, ध्वनंतरिये कह्यु के तापसोनो धर्म सत्य बे. वनेना गुरुर्जनी परीक्षा करवी एम विश्वानरे सुचना करी. ते बंने देवोये कबुल करी. तेमां पण विश्वानरे कडं के जैनमतना जघन्य गुरुनी परीक्षा करवी अने तापसोना उत्कृष्ट गुरुनी परीक्षा करवी ते मारे कबुल ने प्रथम मिथिला नगरीनो पद्मरथ राजा जे नवोज जैनधर्मी थर नावयति थयो हतो, ते चंपानगरीमा गुरुनी पासे दीक्षा सेवा सारं जतो हतो. तेने रस्तामां ते देवताउंये दोगे. रस्तामां तेने :ख देवावास्ते बहु कांटा कांकरा बनावी नांख्या, अने रस्ता शिवाय बीजा स्थानके बहु कीडा श्रादिनी उत्पत्ति करी. राजा जावयति होवाथी शुरू नाव पूर्वक, कोमल उघाडा पगे कांटा कांकरा उपर चाख्यो जाय
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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