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जैनतत्त्वादर्श. दृढतानो विचार करे, वली स्त्रीना शरीरनी अपवित्रता जुगुप्सनीयादि सर्व श्रीहेमचंडसूरिकृतयोगशास्त्रमा तथा श्रीमुनिसुंदरसूरिकृत अध्यात्मकल्पथुममां जेम बतावेल बे, तेम विचारे, तेनुं लेशमात्र स्वरूप लखीये बीये.
चामडी, हाड, मजा, आंतरडां, चरबी, नस, रुधिर, मांस, विष्ठा, मूत्र, ' खेल, खंखारादि अशुचि पुजलनुं पिंड स्त्रीनुं शरीरडे, आ पिंडमां तुं शुं रमणीय वस्तु देखे जे? जे लोक विष्ठाने दूरथी देखी शूथूकार करे , तेज मूढलोक विष्टा अने मूत्रथी नरेला एवा स्त्रीना शरीरनी अभिलाषा करे बे! बहु बिनोवाली विष्टानी कोथली जेना बिस्रोमांची कमीजाल निकसे बे, तथा कृमीजालथी नरेली, एवी स्त्री के. चपलता, माया, असत्यता, उगार इत्यादिथी संस्कारित थयेल , तेथी जे पुरुष मोदथी तेनो संग करे, जोगविलास करे, तेने नरकगति . विष्टानी कोथलीरूप स्त्रीनां अगीआरे धारथी अशुचि' वहे . जे झारने सुंघो, ते छारमांथी सडेवा कुतराना कलेवर समान दुर्गंध आवे बे. हवे विचारमात्र एज आवेडे के कामी पुरुषो आवा स्त्रीना शरीरमा रागांध केम थाय ? इत्यादि स्त्रीना शरीरनी अशुचिता विचारे. धन्य मुनि जंबुकुमारने!! जेणे नवपरिणीत श्राव पद्मिनी स्त्री तथा नवाणुक्रोड सोनैया एक क्षणमात्रमा तजी दीधां! तेनुं माहात्म्य विचारे; अने श्रीथूलिन तथा सुदर्शन शेठना शियलनुं माहात्म्य विचारे, वदी कषाय जीतवाना उपाय चिंतवे, तथा चावस्थितिनो विचार करे, अने धर्ममनोरथ जावनानी चितवना करे. __ कषाय जीतवानो उपाय आ प्रमाणे, क्रोधने क्षमाथी जीते, मानने नम्रताथी जीते, मायाने सरलताथी जीते, लोनने संतोषयी जीते, रागने वैराग्यथी जीते, वेषने मित्रताथी जीते, मोहने विवेकथी जीते, कामने, स्त्रीना शरीरनी अशुचित्व जावनाशी जीते, मत्सरने मननी मोटाश्थी जीते, विषयने संयमथी जीते, योगने गुप्तिथी जीते, बालसने उद्यमयी जीते, अविरतिपणाने विरतिपणाथी जीते;था प्रमाणे सर्व सुखेंथी जीती शकाय . पूर्वे महान् पुरुषोयें आरीतियेंज कषायने जीतेल . • जवस्थिति महापुःखरूप जे. चारे गतिमां जीव नाना प्रकारे दुःख पामी रह्या बे. नरकगतिना साते नरकोमा अत्यंत क्षेत्र वेदना . चार न-,